Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ६७]
पंचमगाहामुत्तस्स अत्थपरूवणा वग्गणाकसायेसु कसायोवजोगवग्गणासु केवचिरसुवजुत्ता होंति ति सुत्तत्थावलंबणादो कालागुणमस्स पडिबद्धत्तमेत्थ दट्टव्वं ।
* 'केवडिगा च कसाए त्ति भागाभागो। ।
$ १८६. एदम्मि तदियावयबे भागाभागाणुगमो णिबद्धो ति गहेयव्वो, कम्हि कसाये कसायोवजुत्तसव्वजीवाणं केवडिया भागा उवजुत्ता होति त्ति षदसंबंधावलंबणादो ।
* 'के के च विसिस्सदे केणे' त्ति अप्पाबहुवे ।
१८७. एदम्मि गाहामुत्तचरिमावयवे अप्पाबहुआणुगमो णिबद्धो, के कसायोवजुत्ता जीवा कत्तो कसायोवजुत्तजीवरासीदो केत्तियमेत्तेण विसिस्सदे अहिया होंति त्ति पदसंबंधं कादूण सुत्तत्थावलंबणादो ।
* एवमेदाणि चत्तारि अणिओगहाराणि सुत्तणिबद्धाणि । $ १८८. कुदो १ चदुण्हमेदेसि णामणिद्देसं कादणेदम्मि गाहासुत्ते णिद्दिद्वत्तादो । * सेसाणि सूचणाणुमाणेण कायव्वाणि ।
$ १८९. सेसाणि पुण संतपरूवणादीणि चत्तारि अणिओगद्दाराणि सूचणाणुमाणेणेत्थ गहेयव्वाणि, सुत्तणिदिवाणं चउण्हमणियोगद्दाराणं देसामासयभावेणावट्ठाणदंसणादो त्ति भणिदं होइ । तम्हाएदाणि अट्ठ अणिओगद्दाराणि एदीए गाहाए सूचिदाणि अर्थात् कषायोपयोगवर्गणाओंमें जीव कितने काल तक उपयुक्त होते हैं इस प्रकार सूत्रके अर्थका अवलम्बन करनेसे प्रकृतमें कालानुगम प्रतिबद्ध है ऐसा जानना चाहिए।
___ * 'किस कषायमें कौन कितनेवाँ भाग उपयुक्त हैं। इस वचन द्वारा भागाभागानुगम सूचित किया गया है।
$ १८६. गाथाके इस तृतीय पादमें भागाभागानुगम निबद्ध है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि किस कषायमें कषायसे उपयुक्त हुए सब जीवोंके कितने भाग जीव उपयुक्त होते हैं इस प्रकार पदके सम्बन्धका अवलम्बन लिया गया है।
- * “कौन-कौन कषायवाले जीव किस कषायवाले जीवोंसे अधिक होते हैं। इस वचन द्वारा अल्पबहुत्व सूचित किया गया है।
$ १८७. गाथासूत्रके इस अन्तिम पादमें अल्पबहुत्वानुगम निबद्ध है, क्योंकि कषायसे उपयुक्त हुए कौन जीव कषायसे उपयुक्त हुई किस जीवराशिसे कितने 'विसिस्सदे' अर्थात् अधिक होते हैं इस प्रकार पद सम्बन्ध करके सूत्रके अर्थका अवलम्बन लिया गया है।
* इस प्रकार ये चार अनुयोगद्वार सूत्रनिबद्ध हैं। $ १८८. क्योंकि इन चारका नामनिर्देश करके ये इस गाथासूत्रमें निर्दिष्ट किये गये हैं। * शेष अनुयोगद्वार सूचनावश अनुमानद्वारा ग्रहण कर लेने चाहिए ।।
६ १८९. किन्तु शेष सत्प्ररूपणा आदि चार अनुयोगद्वार सूचनावश अनुमानद्वारा यहाँपर ग्रहण कर लेने चाहिए, क्योंकि सूत्र में निर्दिष्ट किये गये चार अनुयोगद्वारोंका देशामर्षकभावसे अवस्थान देखा जाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इसलिए ये आठ अनु