Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
धुवं काढूण तेण सह माणादीणमण्णदरं घेत्तूण दुसंजोगे कीरमाणे समुप्पञ्जइत्ति भणिदं होइ । तं कथं ? कोह- माणोवजुत्ता वा, कोह-मायोवजुत्ता वा, कोह-लोभोवजुत्ता वा ति एवमेदेतिणि दुसंजोगभंगा ३ | संपहि तिकसायोवजुत्तवियप्पपटुप्पा
यणट्टमाह
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* जदि तिकसायो कोहेण सह अण्णदरो तिसंजोगो ।
$ १४९. तिन्हं कसायाणं संजोगो तिकसायो त्ति वुच्चदे । सो कथमुप्पाइ चि भणिदे कोण सह सेससायाणमण्णदरदोकसाए घेत्तूण तिसंजोगे कीरमाणे समुप्पञ्जदि त्ति भणिदं । तं कथं ? कोह -माण - मायोवजुत्ता वा, कोह- माण- लोभोवजुत्ता वा, कोहमाया- लोभोवजुत्ता वा ति । एवमेत्थ वि तिण्णि चैव भंगा ३ । संपहि चदुकसाय - पदुष्पायणट्टमाह
I
* जदि चउकसायो सव्वे चेव कसाया ।
$ १५०. सुगममेदं, सव्वे चैव कोहादिकसाए घेत्तूण चदुकसायोवजुत्तवियप्पुपत्ती विसंवादाभावादो । एवमेत्थ एक्को चैव भंगो होदि । एवं णिरयोघो परुविदो । यह निर्देश किया है । क्रोधराशिको ध्रुव कर उसके साथ मानादिकमेंसे अन्यतर कषायको ग्रहण कर दोका संयोग करने पर द्विसंयोगी भंग उत्पन्न होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शंका- वह कैसे ?
समाधान — क्रोध और मानमें उपयुक्त हुए जीव, अथवा क्रोध और मायामें उपयुक्त हुए जीव अथवा क्रोध और लोभमें उपयुक्त हुए जीव इस प्रकार ये तीन द्विसंयोगी भंग ३ होते हैं । अब तीन कषायों में उपयुक्त हुए जीवोंके विकल्पोंका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं—
* यदि तीन कषायों का संयोग है तो क्रोधके साथ अन्यतर दो कषाय इस प्रकार तीन कषायका संयोग होता है ।
$ १४९. तीन कषायका संयोग तीन कषाय ऐसा कहा जाता है । वह कैसे उत्पन्न होता है ऐसी पृच्छा होनेपर क्रोधके साथ शेष कषायोंमेंसे अन्यतर दो कषायोंको ग्रहणकर तीनका संयोग करने पर उत्पन्न होता है ऐसा कहा है ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान - क्रोध, मान और मायामें उपयुक्त हुए जीव, अथवा क्रोध, मान और लोभ में उपयुक्त हुए जीव अथवा क्रोध, माया और लोभमें उपयुक्त हुए जीव । इस प्रकार यहाँ पर भी तीन ही भंग ३ होते हैं ।
अब चार कषायोंके कथन करनेके लिए कहते हैं
* यदि चार कषायका संयोग है तो सभी कषायें होती हैं ।
$ १५.० यह सूत्र सुगम है, क्योंकि सभी क्रोधादि कषायको ग्रहण कर चार कषायों में उपयुक्तरूप विकल्पकी उत्पत्तिमें विसंवाद नहीं है । इस प्रकार यहाँ पर एक ही भंग होता