Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ६६]
चउत्थगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा न्लेहितो असंखेजगुणा त्ति सुत्तत्थो । एसो वि रासी आवलियाए असंखेजदिभागमेत्तो चेव । किंतु उक्कस्समाणोवजोगद्धाए परिणममाणजीवेहिंतो जहण्णमाणोवजोगद्धाए परिणममाणजीवा बहुआ होति, जहण्णकालस्स पउरं संभवादो। तदो सिद्धमसंखेजगुणत्तं । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो ।
* अणुकस्समजहण्णासु माणोवजोगद्धासु जीवा असंखेजगुणा।
६ १६९. एत्थ वि पुव्वं व अहियारसंबंधो कायव्वो। तदो एसो वि जीवरासी आवलियाए असंखेजदिभागमेत्तो चेव होइ । होतो वि पुव्विल्लरासीदो एसो असंखेजगुणो । किं कारणं ? जहणिया माणोवजोगद्धा एयवियप्पा चेव, अजहण्णाणुकस्समाणोवजोगद्धाओ पुण अणेयवियप्पाओ । तेणेत्थ बहुवियप्पसंभवादो बहुओ जीवरासी परिणमदि त्ति सिद्धमसंखेजगुणत्तं । गुणगारो च आवलियाए असंखेजदिभागो।
मानकषायरूपसे परिणत हुए जीव पूर्वोक्त जीवोंसे असंख्यातगुणे होते हैं इस प्रकार सूत्रका अर्य फलित हो जाता है । यह राशि भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है। किन्तु उत्कृष्ट मानोपयोगकालमें परिणमन करते हुए जीवोंसे जघन्य मनोपयोगकालमें परिणमन करनेवाले जीव बहुत होते हैं, क्योंकि जघन्य काल प्रचुररूपसे पाया जाता है, इसलिये ये जीव असंख्यातगुणे हैं यह सिद्ध हुआ।
शंका-गुणकार क्या है ? समाधान--गुणकार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
* उनसे अनुत्कृष्ट-अजघन्य मानकषायसम्बन्धी उपयोगकालोंमें जीव असंख्यातगुणे हैं।
$ १६९. यहाँपर भी पहलेके समान अधिकारका सम्बन्ध करना चाहिए । इसलिए यह जीवराशि भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होती है । उतनी होती हुई भी पिछली राशिसे यह राशि असंख्यातगुणी है, क्योंकि मानोपयोगका जघन्य काल एक ही प्रकारका है, किन्तु अजघन्य-अनुत्कृष्ट मानोपयोगकाल अनेक भेदोंको लिये हुए है। इसलिए यहाँपर बहुत विकल्प सम्भव होनेसे बहुत जीवराशि मानकषायरूपसे परिणमन करती है, इसलिए पूर्वोक्त जीवराशिसे यह राशि असंख्यातगुणी है यह सिद्ध हुआ । यहाँ गुणकार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
विशेषार्थ—मानकषायके उत्कृष्टकाल और जघन्यकालको छोड़कर शेष समस्त काल अजघन्य-अनुत्कृष्टकालमें परिगृहीत हो जाता है। यतः इस कालके भीतर मानकषायरूपसे परिणत सब सजीवराशि नहीं ली गई है। किन्तु उत्कृष्ट मानकषायरूपसे परिणत त्रसजीवराशि ही ली गई है, इसलिए वह आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर भी पूर्वोक्त जीवराशिसे असंख्यातगुणी बन जाती है, क्योंकि मानकषायके जघन्यकालका प्रमाण एक समय मात्र है और अजघन्य-अनुत्कृष्टकाल असंख्यात समयप्रमाण है, इसलिए उक्तरूपसे जीवराशि बन जाती है। यहाँ सर्वत्र त्रस जीवराशिकी अपेक्षा यह अल्पबहुत्व बतलाया जा रहा है यह ध्यान रहे।