Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो ७ उक्कस्सिया० माणोवजोगद्धा० जीवा असंखेजगुणा । को गुणगारो ? असंखेजाओ सेढीओ । अजहण्णमणुक० कसायुदयट्ठाणे० उक्कस्सिया० कोहोवजोगद्धा. जीवा विसेसाहिया । अजहण्णमणुक० कसायुदयट्ठाणे० उक्कस्सिया० मायोवजोगद्धा० जीवा विसेसाहिया । अजहण्णमणुक० कसायुदयट्ठाणे० उक्क० लोभोव० जीवा विसे । अजहण्णमणुक्कस्सए० कसायुदयट्ठाणे० जहणिया० माणोवजोगद्धा० जीवा असंखेजगुणा। अजहण्णमणुक्कस्स० कसायुदयट्ठा जहणिया• कोहोवजोगद्धा० जीवा विसेसाहिया । अजहण्णमणुक्कस्स० कसायुदयट्ठा. जहणिया० मायोवजोगद्धा० जीवा विसेसाहिया। 'अजहण्णमणुक्कस्स० कसायुदयट्ठा० जहणिया० लोभोवजोगद्धा० जीवा विसेसाहिया। अजहण्णमणुक्कस्स० कसायुदयट्ठा० अजहण्णमणुक्कस्सियासु माणोवजोगद्धासु जीवा असंखेजगुणा । अजहण्णमणुक्कस्स० कसायुदयट्ठा० अजहण्णमणुक्कस्सियासु कोहोवजोगद्धासु जीवा विसेसाहिया । अजहण्णमणुक्कस्स० कसायुदयट्ठा० अजहण्णमणुक्कस्सियासु मायोवजोगद्धासु जीवा विसेसाहिया। अजहण्णमणुक्कस्स० कसायुदयट्ठाणेसु अजहण्णमणुक्कस्सियासु लोभोवजोगद्धासु जीवा विसेसाहिया । एवमोघेण परत्थाणप्पाबहुअमेदं परूविदं। एवं चेव तिरिक्खमणुसगदीसु वि वत्तव्यं, विसेसाभावादो। णिरयगदीसु परत्थाणप्पाबहुअं चिंतिय णेदव्वं । तदो चउत्थीए गाहाए अत्थविहासा समप्पदि त्ति उवसंहारवक्कमाह
* एवं चउत्थीए गाहाए विहासा समत्ता । गुणकार क्या है ? असंख्यात जगच्छ्रेणिप्रमाण गुणकार है । उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषायउदयस्थानोंमें और उत्कृष्ट क्रोधोपयोगकालमें जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्यअनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानों में और उत्कृष्ट मायोपयोगकालमें जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और उत्कृष्ट लोभोपयोगकालमें जीव विशेष अधिक है। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और जघन्य मानोपयोगकालमें जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और जघन्य क्रोधोपयोगकालमें जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानों में और जघन्य मानो पयोगकालमें जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानों में और जघन्य लोभोपयोगकालमें जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और अजघन्य-अनुत्कृष्ट मानोपयोगकालोंमें जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्यअनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और अजघन्य-अनुत्कृष्ट क्रोधोपयोगकालोंमें जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और अजघन्य-अनुत्कृष्ट मायोपयोगकालोंमें जीव विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्य-अनुत्कृष्ट कषाय-उदयस्थानोंमें और अजधन्य-अनुत्कृष्ट लोभोपयोगकालोंमें जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार ओघसे परस्थान अल्पबहुत्वका कथन किया। इसी प्रकार तिर्यश्चगति और मनुष्यगतिमें भी कहना चाहिए, क्योंकि ओघकथनसे इनके कथनमें कोई भेद नहीं है। नरकगति और देवगतिमें परस्थान अल्पबहुत्वको विचारकर जानना चाहिए। इसके बाद चौथी गाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान समाप्त होता है इस आशयके उपसंहार वाक्यको कहते हैं
* इस प्रकार चौथी गाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान समाप्त हुआ।