Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ६५ ]
तदियगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
मेत्ताणि उदयद्वाणाणि अत्थि । ताणि पुण माणे थोवाणि, कोहे विसेसाहियाणि, माया विसेसाहियाणि, लोभे विसेसाहियाणि । एदाणि सव्वाणि समुदिदाणि सगसकसा पडबद्धाणि भावोवजोगवग्गणाओ णाम, तिव्व-मंदादिभावणिबंधणत्तादोत्ति । * एदासिं दुविहाणं पि वग्गणाणं परूवणा पमाणमप्पाबहुचं च
वक्तव्वं ।
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$ १३०. एदा सिमणंतरणिदिट्ठाणं दुविहाणं पि वग्गणाणं काल-भावोवजोगविसयाणमेत्तो परूवणादीहिं तीहिं अणियोगद्दारेहिं अणुगमो कायव्वो, अण्णहा तव्विसयसम्मण्णाणाणुववत्तीदो त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स पिंडत्थो । एदाणि च सुगमाणि ति चुण्णिसुत्तयारेण ण वित्थरिदाणि तदो एदेसिं पञ्जवट्ठियपरूवणं वत्तइस्सामो । तत्थ ताव कालोवजोगवग्गणाणं परूवणदाए ओघादेसेहिं चउन्हं पि कसायाणमत्थि कालोवजोगवग्गणाओ । पमाणाणुगमेण चउन्हं कसायाणं मज्झे तत्थ एकेकस्स कसायस्स कालोवजोगवग्गणाओ अंतोमुहुत्तमेत्तीओ होंति ।
$ १३१. अप्पाबहुअं दुविहं - सत्थान - परत्थाणभेएण । सत्थाणे ताव पयदंसव्वत्थवा कोहस्स जहण्णकालोवजोगवग्गणा । उक्कस्सकालोवजोगवग्गणा संखेजगुणा | अहवा सव्वत्थोवा कोहस्स जहणणकालोवजोगवग्गणा । वग्गणाविसेसो संजगुणो । किं कारणं ? जहण्णकालोवजोगवग्गण मुक्कस्सकालोवजोगवग्गणाए सोहिय प्रमाण उदयस्थान हैं । परन्तु मानमें वे सबसे स्तोक हैं, उनसे क्रोध में विशेष अधिक हैं, उनसे मायामें विशेष अधिक हैं और उनसे लोभमें विशेष अधिक हैं | अपने-अपने कषायसम्बन्धी ये सब मिलकर भावोपयोगवर्गणा कहलाते हैं, क्योंकि ये तीव्रभाव और मन्दभाव आदिके निमित्तसे होते हैं ।
* इन दोनों ही प्रकारकी वर्गणाओंकी प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व कहना चाहिए ।
$ १३०. अनन्तर पूर्व कही गई कालोपयोग और भावोपयोगको विषय करनेवालीं इन दोनों ही प्रकारकी वर्गणाओंका आगे प्ररूपणा आदि तीन अनुयोगद्वारोंका आश्रय कर अनुगमन करना चाहिए, अन्यथा तद्विषयक सम्यग्ज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता, इस प्रकार यह इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । किन्तु ये सुगम हैं, इसलिए चूर्णिसूत्रकारने इनका विस्तार नहीं किया । इसलिए इनकी पर्यायार्थिक अर्थात् अलग-अलग प्ररूपणा करेंगे । सर्वप्रथम उनमें से कालोपयोगवर्गणाओंकी प्ररूपणा करनेपर ओघ और आदेशसे चारों ही कषायोंकी कालोपयोगवर्गणाऐं हैं | प्रमाणानुगमकी अपेक्षा चारों कषायों में से एक-एक कषायकी कालोपयोगवर्गणाऐं अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होती हैं ।
$ १३१. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है - स्वस्थान अल्पबहुत्व और परस्थान अल्पबहुत्व | स्वस्थान अल्पबहुत्वका प्रकरण है— क्रोधकी जघन्य कालोपयोगवर्गणा सबसे अल्प है। उससे उत्कृष्ट कालोपयोगवर्गणा संख्यातगुणी है । अथवा क्रोधकी जघन्य कालोपयोगवर्गणा सबसे स्तोक है। उससे वर्गणाविशेष संख्यातगुणा है, क्योंकि उत्कृष्ट कालोपयोगवर्गणामेंसे जघन्य कालोपयोगवर्गणाके घटानेपर जो शेष रहे उसके कथनका यहाँ अवलम्वन लिया गया है ।