Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गाथा ६४ ]
विदियगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणी * एवं सेसासु वि गदीसु ।
९०. सुगममेदमप्पणासुत्तं, एक्कम्हि भवग्गहणे कोहादीणमुवजोगा संखेजा असंखेज्जा वा त्ति एदेण भेदाभावादो। संपहि एत्थेव सण्णियासविसेसपरूवणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ____ * णिरयगदीए जम्हि कोहोवजोगा संखेना तम्हि माणोवजोगा णियमा संखेजा।
९१. एदेण सुत्तेण णिरयगदीए कोहस्स संखेज्जोवजोगाणं णिरुंभणं कादूण तत्थ माणोवजोगा कि संखेजा असंखेजा या ति मग्गणा कीरदे। तं कथं ? जम्हि णेरइय-भवग्गहणे कोहोवजोगा संखेजा तत्थ माणोवजोगा णियमा संखेजा चेव भवंति, कोहोवजोगेसु संखेजेसु संतेसु तत्तो विसेसहीणाणं माणोवजोगाणं तहाभावसिद्धीए बाहाणुवलंभादो।
* एवं माया-लोभोवजोगा।
९२. जहा कोहोवजोगेसु संखेजेसु माणोवजोगा णियमा संखेजा जादा एवं माया-लोभोवजोगा च णियमा संखेजा त्ति वत्तव्वं, तेसु संखेजेसु संतेसु तत्तो संखेज
कहते हैं
* इसी प्रकार शेष गतियोंमें भी कथन करना चाहिए ।
$ ९०. यह अर्पणासूत्र सुगम है, क्योंकि एक भवमें क्रोधादि कषायोंके उपयोग संख्यात या असंख्यात होते हैं इस प्रकार इस कथनसे यहाँके कथनमें कोई अन्तर नहीं है। अव इसी गतिमें सन्निकर्ष विशेषका कथन करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* नरकगतिमें जिस भवमें क्रोधकषायके उपयोग संख्यात होते हैं उस भवमें मानकषायके उपयोग नियमसे संख्यात होते हैं ।
९१. इस सूत्र द्वारा नरकगतिमें क्रोधकषायके संख्यात उपयोगोंको विवक्षित कर वहाँ मानकषायके उपयोग क्या संख्यात होते हैं या असंख्यात होते हैं इस विषयका अनुसन्धान किया गया है।
शंका-वह कैसे ?
समाधान- नारकियोंके जिस भवमें क्रोधके उपयोग संख्यात होते हैं वहाँ मानकषायके उपयोग नियमसे संख्यात होते हैं, क्योंकि क्रोधकषायके उपयोगोंके संख्यात होने पर उनसे विशेष हीन मानकषायके उपयोगोंके संख्यात सिद्ध होनेमें कोई बाधा नहीं पाई जाती।
* इसी प्रकार मायाकषाय और लोभ कषायके उपयोग जानने चाहिए ।
६९२. जिस प्रकार क्रोधकषायके उपयोगोंके संख्यात होने पर मानकषायके उपयोग नियमसे संख्यात होते हैं उसी प्रकार माया और लोभकषायके उपयोग नियमसे संख्यात होते हैं ऐसा कहना चाहिए, क्योंकि उनके संख्यात होने पर उनसे संख्यातगुणे हीन इन उपयोगों