Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
* जहा णेरइयाणं मायोवजोगाणं वियप्पा तहा देवाणं माणोवजो गाणं वियप्पा ।
* जहा णेरइयाणं लोभोवजोगाणं वियप्पा तहा देवाणं कोहोवजो गाणं वियप्पा ।
१०४. एसिं सुत्ताणमत्थपरूवणा सुगमा । संपहि तिरिक्ख - मणुसगदीसु णत्थि एसोसणियासभेदो, तत्थ संखेज्जवस्सिये भवग्गहणे सव्वेसिमविसेसेण संखेज्जोवजोगणियमदंसणादो । असंखेज्जवस्सिये वि सव्वेसिमसंखे जोव जोगत्तेण णाणत्ताभावाद । किं कारणं १ अवद्विदपरिवाडीए सव्वेसिमसंखेज्जेसु आगरिसेसु लोभ - मायादिकमेण गदेसु सईं विसरिसपरिवाडीए तत्थुष्पत्तिणियमदंसणादो ।
$ १०५ एवमेत्तिएण पबंधेण गाहापुव्वद्धस्स अत्थविहासणं काढूण संपहि गाहापच्छिममवलंविय अदीदकालसंबंधेण भवप्पाबहुअं परूवेमाणो तदवसरकरण
५०
माह -
* जेसु रइयभवेसु असंखेज्जा को होवजोगा माण- माया-लोभोव
* जिस प्रकार नारकियोंके मायाकषायके उपयोगोंके सन्निकर्ष विकल्प होते हैं। उसी प्रकार देवोंके मानकषायके उपयोगोंके सन्निकर्षविकल्प होते हैं ।
* जिस प्रकार नारकियोंके लोभकषायके उपयोगोंके सन्निकर्षविकल्प होते हैं। उसी प्रकार देवोंके क्रोधकषायके उपयोगोंके सन्निकर्षविकल्प होते हैं ।
$ १०४. इन सूत्रोंके अर्थका कथन सुगम है। अब तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति में यह सम्निकर्षभेद नहीं है, क्योंकि वहाँ संख्यात वर्षकी आयुवाले भवग्रहण के भीतर सभी कषायोंके समानरूपसे संख्यात उपयोगोंका नियम देखा जाता है । असंख्यात वर्षकी आयुवाले भव में भी सभी कषायोंके असंख्यात उपयोगरूपसे नानात्वका अभाव है, क्योंकि अवस्थित परिपाटीके द्वारा लोभ, माया आदिके क्रमसे सभी कषायोंके असंख्यात परिवर्तनवारोंके होने पर एकवार विसदृश परिपाटीके आश्रयसे वहाँ नानापनेकी उत्पत्तिका नियम देखा जाता है ।
विशेषार्थ — तिर्यञ्चगति और मनुष्यगतिमें लोभ, माया, क्रोध और मान इस क्रम यह जीव चारों कषायोंमें असंख्यात वार तक पुनः-पुनः उपयुक्त होता रहता है, इसलिए तो संख्यात वर्षकी आयुवाले भवमें चारों कषायोंके संख्यात सदृश उपभोगभेद बतला कर वहाँ raat frषेध किया है। तथा असंख्यात वर्षकी आयुवाले भवमें भी चारों कषायों के असंख्यातवार सदृश उपयोग परिवर्तनोंके बाद ही एक बार विसदृश परिपाटीसे उपयोग परिवर्तन होना सम्भव है । इसलिए वहाँ भी चारों कषायोंके असंख्यात सदृश उपयोगों को ख्यालमें रखकर नानापनेका निषेध किया है ।
$ १०५. इस प्रकार इतने प्रबन्धके द्वारा गाथाके पूर्वार्धके अर्थका स्पष्टीकरण करके अब गाथाके उत्तरार्धका अवलम्बन लेकर अतीत कालके सम्बन्धसे भवके अल्पबहुत्वको कहते हुए उसका अवसर करनेके लिए कहते हैं
* नारकियोंके जिन भवोंमें क्रोधकषायके उपयोग तथा मान, माया और