Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[उवजोगो७ णिदिवा ।
* जे असंखेजमायोवजोगिगा भवा ते भवा असंखेजगुणा ।
$११३. किं कारणं ? तत्तो पुव्वमेव एदेसिं पारंभदंसणादो। जइ वि एत्थ हेट्ठिमभववियप्पा उवरिमभववियप्पाणमसंखेज्जदिभागमेत्ता चेव तो वि णासंखेज्जगुणत्तमेदेसि विरुज्झदे, हेट्ठिमभववियप्पेसु पादेक्कमसंखेज्जपरिवाडीओ वोलाविय पुणो उवरिमभववियप्पेसु समयाविरोहेण संकंतिणियमदंसणादो। तेणुवरिमभववियप्पा दोण्हं पि समाणा होदूण पुणो हेडिमवियप्पे अस्सियूण पुचिल्लेहिंतो एदे असंखेज्जगुणा त्ति घेत्तव्वं ।
* जे असंखेजमाणोवजोगिगा भवा ते भवा असंखेजगुणा।
११४. एत्थ वि कारणपरूवणा सुगमा, अणंतरादीदपबंधेणेव गयत्थत्तादो। * जे असंखेजकोहोवजोगिगा भवा ते भवा असंखेजगुणा । ६११५. एत्थ वि कारणं अणंतरपरूविदमेव ।
* जे संखेजकोहोवजोगिगा भवा ते भवा असंखेजगुणा । इसलिए ये सब मिलकर अनन्त संख्यारूप होकर सबसे स्तोक है यह निर्देश किया है।
* जो मायाकषायके असंख्यात-उपयोगवाले भव हैं वे भव असंख्यातगुणे हैं।
$ ११३. क्योंकि उनसे पहले ही इनका प्रारम्भ देखा जाता है। यद्यपि यहाँ पर अधस्तन भवविकल्प उपरिम भवविकल्पोंके असंख्यातवें भागप्रमाण ही हैं तो भी ये असंख्यातगुणे हैं यह विरोधको नहीं प्राप्त होता, क्योंकि अधस्तन भवविकल्पोंमें पृथक-पृथक असंख्यात परिपाटियोंको विताकर पुनः उपरिम विकल्पोंमें आगमके अनुसार संक्रान्तिका नियम देखा जाता है। इसलिए उपरिम भवविकल्प दोनोंके समान होकर पुनः अधस्तन भवविकल्पोंका आश्रयकर लोभकषायके असंख्यात उपयोगवाले भवोंसे ये असंख्यातगुणे हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
विशेषार्थ-मायाकषायके असंख्यात उपयोगवाले भव पहले प्रारम्भ हो जाते हैं और लोभकषायके असंख्यात उपयोगवाले भव बादमें प्रारम्भ होते हैं। इसलिए मायाकषायके असंख्यात उपयोगवाले सभी भवविकल्प लोभकषायके असंख्यात उपयोगवाले भवविकल्पोंसे असंख्यातगुणे हो जाते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* जो मानकषायके असंख्यात-उपयोगवाले भव हैं वे भव असंख्यातगुणे हैं ।
$ ११४. यहाँ भी कारणका कथन सुगम है, अनन्तर पूर्व कहे हुए प्रबन्धसे ही उसका ज्ञान हो जाता है।
* जो क्रोधकषायके असंख्यात-उपयोगवाले भव हैं वे भव असंख्यातगुणे हैं। ___$ ११५. यहाँ पर भी वही कारण जानना चाहिए जिसका कथन इसके पूर्व कर आये हैं।
* जो क्रोधकषायके संख्यात-उपयोगवाले भव हैं वे भव असंख्यातगुणे हैं ।