Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
वरसोवजोगा ६, लोभस्स एगवस्सोवजोगा ३ । एदेसिं भज माणजहण्णपरित्तासंखेजमेत्तोवजोगपमाणं संदिट्ठीए अट्ठत्तरसयमेत्तमिदि गहेयव्वं १०८ । पुव्वुत्तसलागाहिं तेरा सियकमेणेदमोवट्टिय जहाकममुप्पाइदवस्साणि कोहस्स ४, माणस्स ६, मायाए १८, लोभस्स ३६ । एत्थ कोहस्स लद्धवस्त्राणि थोवाणि, माणस्स संखेजभाग भाहियाणि, मायाए संखेज्जगुणाणि, लोभस्स संखेज्जगुणाणि । तदो कोहस्स जहण्णपरित्ता - संखेज्जमेत्तोवजोगियवस्सेहिंतो संखेज्जभागन्भहियमेत्तवस्त्राणि जाव ण गदाणि ताव माणस्स जहण्णपरित्तासंखेज्जमेत्तोवजोगा ण भवंति । माणवस्सेहिंतो संखेज्जगुणमेत्त- . वस्साणि जाव ण गदाणि ताव मायाए जहण्णपरित्तासंखेज्जमे त्तोवजोगा ण संभवंति । मायावस्सेहिंतो संखेज्जगुणमेत्तवस्त्राणि जाव ण गदाणि ताव लोभस्स जहण्णपरित्तासंखेज्जमेत्तोवजोगा ण होंति त्ति घेत्तव्वं । तेसिमेसा संदिट्ठी
०००००१०००००००००००००००००००००००
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एदे कोहभवा
०-०००००१०००००००००००००००००००००००००००००००००००० • एदे
माणभवा ।
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एदे मायाभवा ।
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००००१००००००००
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एदे लोभभवा ।
$ १११. एत्थ एकादो उवरिमसव्वसुण्णट्ठाणाणि असंखेज्जोवजोगिगा भवा कषायके एक वर्ष के भीतर प्राप्त हुए उपयोग ये हैं - १८, मायाकषायके एक वर्षके भीतर प्राप्त हुए उपयोग ६ हैं और लोभकषायके एक वर्षके भीतर प्राप्त हुए उपयोग ३ हैं । इनकी भज्यमान राशि जघन्य परीतासंख्यातप्रमाण उपयोगकाल हैं, संदृष्टिमें उसका प्रमाण एक सौ आठ १०८ ग्रहण करना चाहिए। अब पूर्वोक्त शलाकाओंके द्वारा त्रैराशिकविधिसे इसे भाजित करने पर क्रमसे उत्पन्न हुए वर्ष क्रोधकषाय के ४, मानकषायके ६, मायाकषायके १८ और लोभकषायके ३६ होते हैं । यहाँ क्रोधकषायके प्राप्त हुए वर्ष सबसे थोड़े हैं, उनसे मानकषायके वर्ष संख्यातवें भाग अधिक हैं, उनसे मायाकषायके वर्ष संख्यातगुणे हैं और उनसे लोभकषायके वर्ष संख्यातगुणे हैं । इसलिए क्रोधकषायके जघन्य परीतासंख्यातप्रमाण उपयोगवाले वर्षोंसे संख्यातवें भागप्रमाण अधिक वर्ष जब तक व्यतीत नहीं होते हैं तब तक मानकषायके जघन्य परीतासंख्यात प्रमाण उपयोग नहीं होते हैं। मानकषायके वर्षोंसे संख्यातगुणे अधिक वर्ष जब तक नहीं व्यतीत होते हैं तब तक मायाकषायके जघन्य परीता संख्यातप्रमाण उपयोग नहीं होते हैं तथा मायाकषायके वर्षोंसे संख्यातगुणे अधिक वर्ष जब तक नहीं व्यतीत होते हैं तब तक लोभकषायके जघन्य परीतासंख्यातप्रमाण उपयोग नहीं होते हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । उनकी यह संदृष्टि है - ( संदृष्टि मूलमें दी है । )
$ १११. यहाँ पर संदृष्टिमें एक अंकसे आगेके सब शून्यस्थान असंख्यात उपयोगवाले
१. ता० प्रती - कमेण णे (ए) दमोवट्टिय इति पाठः ।
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