Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७ तिरिक्खजोणियाणं जहण्णलोभोवजोगद्धादो संखेज्जगुणभावेण सव्वकालमवट्ठाणणियमदंसणादो।
* देवगदीए जहणिया लोभद्धा विसेसाहिया ।
४४. एत्थ विसेसपमाणं सुगमं । *णिरयगदीए उक्कस्सिया लोभद्धा संखेजगुणा ।
४५. किं कारणं १ जहण्णकालादो पुग्विल्लादो उक्कस्सकालस्सेदस्स तहाभावसिद्धीए पडिबंधाभावादो । एत्थ गुणगारो तप्पाओग्गसंखेज्जरूवमेत्तो।
* देवगदीए उक्कसिया कोधद्धा विसेसाहिया। ६४६. केत्तियमेत्तो विसेसो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो । * देवगदीए उक्कस्सिया माणद्धा संखेजगुणा। * णिरयगदीए उक्कस्सिया मायद्धा विसेसाहिया। . . * णिरयगदीए उक्कस्सिया माणद्धा संखेनगुणा ।। * देवगदीए उक्कस्सिया मायद्धा विसेसाहिया। $ ४७. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि, जहण्णद्धासु परूविदकारणत्तादो।
* मणुस-तिरिक्खजोणियाणमुक्कस्सिया माणद्धा संखेनगुणा । तिर्यञ्चयोनि जीवोंमें लोभके जघन्य उपयोग कालसे संख्यातगुणा पाया जाता है इस प्रकार उसके रहनेका सर्वदा नियम देखा जाता है।
* उससे देवगतिमें लोभका जघन्य काल विशेष अधिक है।
४४. यहाँ पर विशेषके प्रमाणका कथन सुगम है।। * उससे नरकगतिमें लोभका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है।
$४५. क्योंकि पूर्व में कहे गये जघन्य कालसे इस उत्कृष्ट कालके उस प्रकारसे सिद्ध होनेमें कोई प्रतिबन्ध नहीं पाया जाता । यहाँ गुणकार तत्प्रायोग्य संख्यात अंकप्रमाण है।
* उससे देवगतिमें क्रोधका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। ४६. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। * उससे देवगतिमें मानका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। * उससे नरकगतिमें मायाका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। * उससे नरकगतिमें मानका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। * उससे देवगतिमें मायाका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है।
$ ४७. ये सूत्र सुगम हैं, क्योंकि इसके कारणका कथन जघन्य कालोंका कथन करते समय कर आये हैं।
* उससे मनुष्यों और तिर्यश्चयोनि जीवोंमें मानका उत्कृष्ट काल संख्यात- ।
गुणा है, उससे मनुष्यों और निक