Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो७ लोभद्धा थोवा।
$३५. कुदो ? णेरइएसु जादिविसेसवसेणेव दोसबहुलेसु पेजसरूवलोभपरिणामस्स चिरकालमवट्ठाणासंभवादो।
* देवगदीए जहणिया कोधद्धा विसेसाहिया।
$३६. जइ वि एसा कोधद्धा देवेसु पेजबहुलेसु' सुट्ट थोवा होदि तो वि णेरइयाणं जहण्णलोभद्धादो जादिविसेसेणेव विसेसाहिया त्ति पडिवजेदव्वं । केत्तियमेत्तो विसेसो ? आवलियाए असंखेजदिमागमेत्तो।।
* देवगदीए जहणिया माणद्धा संखेजगुणा ।
$ ३७. किं कारणं ? देवेसु कोहोवजोगकालादो माणोवजोगकालस्स सव्यद्धं तहाभावेणावट्ठाणणियमदंसणादो । को गुणगारो ? तप्पाओग्गसंखेजरूवाणि ।
* णिरयगदीए जहणिया मायद्धा विसेसाहिया ।
३८. एत्थ विसेसपमाणं सुगमं, अणंतरमेव परूविदत्तादो ।
* णिरयगदीए जहणिया माणद्धा संखेजगुणा । नरकगतिमें लोभका जघन्य काल सबसे स्तोक है।
३५. क्योंकि जातिविशेषके कारण ही नारकी दोषबहुल होते हैं, इसलिए उनमें पेञ्ज (प्रेम ) स्वरूप लोभपरिणामका चिरकाल तक रहना सम्भव नहीं है।
* उससे देवगतिमें क्रोधका जघन्य काल विशेष अधिक है।
३६. पेञ्जबहुल देवोंमें यद्यपि क्रोधका यह काल बहुत थोड़ा होता है तो भी नारकियोंके लोभके जघन्य कालसे जातिविशेषवश विशेष अधिक होता है ऐसा जानना चाहिए।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। * देवगतिमें मानका जघन्य काल संख्यातगुणा है।
$ ३७. क्योंकि देवोंमें क्रोधके उपयोग कालसे मानके उपयोग कालके सर्वदा उस प्रकारसे रहनेका नियम देखा जाता है।
शंका-गुणकार क्या है ? समाधान-तत्प्रायोग्य संख्यात अंक गुणकार है। * उससे नरकगतिमें मायाका जघन्य काल विशेष अधिक है।
६ ३८. यहाँ विशेषके प्रमाणका कथन सुगम है, क्योंकि उसका कथन अनन्तर पूर्व ही कर आये हैं।
* उससे नरकगतिमें मानका जघन्य काल संख्यातगुणा है ।
१. ताप्रती -प्प(पे)ज्जबहुलेसु इति पाठः ।