Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ६३ ]
पढमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा मायागरिसाणमदिरेगपाओग्गविसए तहा अहोदूण माणागरिसेहितो कोहागरिसा एगवारमहिया होइ २ २३ २, माणादो कोहमागंतूण पुणो लोभादिसु जहाकम परिणमिदत्तादो। एवं पुणो-पुणो कीरमाणे मायागरिसेहितो कोधागरिसा वि असंखेज्जवारमदिरित्ता समुवलद्धा हवंति । तदो एवंविहमेगं परिबत्तं कादण पुणो वि णेदव्वं जाव णिरुद्धकालो समतो ति । असंखेज्जबस्समेत्तो एत्थ णिरुद्धकालो त्ति घेत्तव्वं । एत्थ णिरुद्धकालभंतरे लोभागरिसाणं सव्वसमासो संदिट्ठीए एसो ४४ । एदे मायागरिसा ३५ । कोधागरिसा एदे ३३ । माणागरिसा च एदे ३२ । अहवा लोहादीणं परिवत्तणसंदिट्ठी एवं वा ठबेयव्वा
३२ २ २ ३ २ २ २ ३ २२२ ३२२२ ३२ २२ ३२२२ ३२२२ ३२२२ ३२२२ ३२२२ ३२२२ ३२२२
२३ २२ २३ २२ २३ २ २ २ २३२ एदं सव्वं पि असंखेज्जवस्साउअतिरिक्ख-मणुसे अस्सियूण परूविदं । संपहि संखेज्जवस्साउअतिरिक्ख-मणुस्से अस्सियूण जइ वुच्चइ तो कोह-माण-माया-लोहाणमागरिसा अण्णोण्णं पेक्खियूण सरिसा चेव हवंति । किं कारणं? असंखेज्जपरिवत्तणवारा क्रोध, मान इस विधिसे असंख्यातवार जाकर वहाँ मायासम्बन्धी परिवर्तनवारके अतिरिक्त प्राप्त होनेके स्थानपर उस प्रकार न होकर अर्थात् मायासम्बन्धी अतिरिक्त परिवर्तनवार न प्राप्त होकर मानसम्बन्धी परिवर्तनवारोंसे क्रोधसम्बन्धी परिवर्तनवार एकबार अधिक प्राप्त होता है। उसकी संदृष्टि २ २ ३ २ है, क्योंकि तब मानके बाद ( दूसरी बार ) क्रोधको प्राप्त कर पुनः क्रमानुसार लोभादिरूपसे परिणमन करता है। इस प्रकार पुनः पुनः करनेपर मायाके परिवर्तनवारोंसे क्रोधके परिवर्तनवार भी असंख्यातवार अधिक प्राप्त होते हैं। तदनन्तर इस प्रकार एक परिवर्तन करके फिर भी विवक्षित कालके समाप्त होने तक फिर भी उक्त विधिसे परिवर्तन कराना चाहिए । यहाँ विवक्षित काल असंख्यात वर्षप्रमाण ग्रहण करना चाहिए। यहाँ पर विवक्षित कालके भीतर लोभके परिवर्तनवारोंका कुल जोड़ संदृष्टिके अनुसार : ४ है। संदृष्टिके अनुसार ये ३५ मायाके परिवर्तनवार हैं। संदृष्टिके अनुसार ये ३३ क्रोधके परिवर्तनवार हैं। तथा संदृष्टिके अनुसार ये ३२ मानके परिवर्तनवार हैं। अथवा लोभादिककी परिवर्तनसंदृष्टि इस प्रकार स्थापित करनी चाहिएलो० मा० क्रो० मा० लो० मा० क्रो० मा० लो० मा० क्रो० मा० लो० मा० क्रो० मा० ३ २ २ २ ३ २ २ २ ३ २ २ २ ३ २ २ २ .३ २ २ २ ३ २ २ २ ३ २ २ २ ३ २ २ २ । ३ २ २ २ ३. २ २ २ ३ २ २ २ ३ २ २ २ २ ३ २ २ २ ३ २ २ २ ३ २ २ २ २ ३ २
यह सभी असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यञ्चों और मनुष्योंको मुख्यकर कहा है। अब संख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यञ्चों और मनुष्योंकी मुख्यतासे यदि कहते हैं तो क्रोध मान, माया, लोभके परिवर्तनवार एक-दूसरेको देखते हुए सदृश ही होते हैं, क्योंकि
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१. ता०प्रतौ परिणामिदत्तादो इति पाठः ।