Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* कोधद्धा उक्कस्सिया विसेसाहिया । $ २९. केत्तियमेत्तो विसेसो १ अंतोमुहुत्तमेत्तो । * मायधा उक्कस्सिया विसेसाहिया । $ ३०. केत्तियमेरोण ? अंतोमुहुतमेचेण ।
* लोभद्धा उक्कस्सिया विसेसाहिया ।
३१. सुगमं । संपहि एत्थ विसेसाहियपमाण मेचियं होदि चि जाणावणट्टमुवरिमं सुत्तपबंधमाह—
* पवाइज्जंतेण उवदेसेण अधाणं विसेसो अंतोमुहुत्तं ।
$ ३२. एदेणेगसमयमेत्तो विसमयमेत्तो एवं गंतूण संखेजसमयमेत्तो वा विसेसो ण होदि, किंतु अंतोमुहुत्तमेत्तो चेवे त्ति जाणाविदं । तं च अंतोमुहुत्तमणेयभेयभिण्णं - संखेज्जावलियाओ आवलि० संखे ० भागो तदसंखेज्जदिभागो चेदि । तत्थ 'वक्खाणादो विसेसपडिवत्ती' इदि णायादो आवलि • असंखे ० भागमेत्तो अद्भाविसेसो ति गेण्यिव्वो, पुव्वाइरियसंपदायस्स तहाविहत्तादो । एवमोघेण तिरिक्ख- मणुस गईणं पहाणभावेणद्धप्पा बहुअं कदं ।
* उससे क्रोधका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है । $ २९. शंका - विशेषका प्रमाण क्या है ? समाधान — अन्तर्मुहूर्तमात्र है ।
[ उवजोगो ७
* उससे मायाका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है । $ ३०. शंका – विशेषका प्रमाण क्या है ?
समाधान — अन्तर्मुहूर्तमात्र है ।
* उससे लोभका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है ।
$ ३१. यह सूत्र सुगम है। अब यहाँ विशेष अधिकका प्रमाण इतना है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* प्रवाह्यमान उपदेशके अनुसार कालोंका परस्पर विशेष अन्तर्मुहूर्त है ।
$ ३२. इस वचनसे एक समयमात्र, दो समयमात्र इस प्रकार जाकर संख्यात समय मात्र विशेष नहीं है, किन्तु अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ही है इस बातका ज्ञान कराया गया है। वह अन्तर्मुहूर्त अनेक प्रकारका है - संख्यात आवलिप्रमाण, आवलिके संख्यातवें भागप्रमाण तथा आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण। उसमें भी 'व्याख्यानमे विशेषका ज्ञान होता है' इस न्यायके अनुसार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण परस्पर कषायोंके कालोंका विशेष है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि पूर्वाचार्योंका सम्प्रदाय उसीप्रकारका पाया जाता है। इस प्रकार ओघसे तिर्यञ्चगति और मनुष्यगतिकी प्रधानता से अल्पबहुत्व कहा ।
१. ता० प्रती विस (म ) यमेत्तो इति पाठः ।