Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ६३]
पढमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा * तं जहा। $ २४. तमप्पाबहुअविहाणं कथं होदि त्ति पुच्छाणिद्देसो कदो भवदि । * ओघेण माणद्धा जहणिया थोवा ।
$ २५. एत्थ 'माणद्धा जहण्णिगा' त्ति वुत्ते तिरिक्ख-मणुसाणं णिव्वाघादेण माणोवजोगजहण्णकालो अंतोमुहुत्तपमाणो घेत्तव्यो, अण्णत्थ घेप्पमाणे माणजहण्ण द्धाए सव्वत्थोवत्ताणुववत्तीदो। तदो जहणिया माणद्धा संखेज्जावलियमेत्ता होदूण सव्वत्थोवा त्ति सिद्धं । ___ * कोघरा जहणिया विसेसाहिया।
5२६. एत्थ विसेसपमाणं सुगम, पवाइज्जतेणुवएसेणद्धाणं विसेसो अंतोमुहुत्तमिदि उवरि सुत्तणिबद्धत्तादो।
* मायद्धा जहणिया विसेसाहिया । * लोभद्धा जहणिया विसेसाहिया । $ २७. एदाणि दो वि सुत्ताणि सुगमाणि । * माणद्धा उक्कस्सिया संखेजगुणा। $ २८. एत्थ गुणगारो तप्पाओग्गसंखेजरूवाणि ।
* वह कैसे ?
६२४. वह अल्पबहुत्वका विधान किस प्रकार है इस प्रकार इस सूत्रद्वारा पृच्छाका निर्देश किया गया है।
* ओघसे मानका जघन्य काल सबसे स्तोक है।
$ २५. इस सूत्रमें 'माणद्धा जहण्णिगा' ऐसा कहनेपर तिर्यश्च और मनुष्योंके निर्व्याघातरूपसे मानका जघन्य उपयोगकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण लेना चाहिए, क्योंकि अन्य जीवोंमें ग्रहण करनेपर मानका जघन्य काल सबसे स्तोक नहीं बन सकता। इसलिए मानका जघन्यकाल संख्यात आवलिप्रमाण होकर सबसे स्तोक है यह सिद्ध हुआ।
* उससे क्रोधका जघन्य काल विशेष अधिक है।
$ २६. यहाँ पर विशेषका प्रमाण सुगम है, क्योंकि प्रवाह्यमान उपदेशके अनुसारकालोंका परस्पर विशेष अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है यह बात आगे सूत्रमें निबद्ध की गई है।
* उससे मायाका जघन्य काल विशेष अधिक है। * उससे लोभका जघन्य काल विशेष अधिक है। ६ २७. ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं। * उससे मानका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । $ २८. यहाँ पर गुणकार तत्प्रायोग्य संख्यात अंक हैं।
१. ता०प्रतौ घेप्पमाणो इति पाठः ।
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