Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो ७६ * गदीसु णिखमण-पवेसणेण एगसमयो होज ।
$ २२. णिक्खमणेण ताव एगसमयो वुच्चदे-एगो गेरइयो माणादिअण्णदरकसायोवजुतो होदण द्विदो एगसमयमाउगमत्थि चि कोहोवजोगपरिणदो एगसमयमच्छिण णिक्खंतो तिरिक्खो मणुस्सो वा जादो, लद्धो कोहोवजोगस्स णिक्खमणमस्सियूण जहण्णकालो एगसमयमेनो । संपहि पवेसणेण वुच्चदे–एको तिरिक्खो मणुस्सो वा कोधकसाएण हिदो कोधद्धाए एगसमयो अत्थि चि कालं कादूण णेरइएसुववण्णो पढमसमए कोहोवजोगेण दिट्ठो, विदियसमए अण्णकसाई जादो। एवं पवेसणमस्सियूणेगसमयो लद्धो होइ । एवं सेसकसायाणं पि' जोजेयव्वं । एवं सेसासु वि गदीसु णिक्खमण-पवेसणेहि एगसमयपरूवणा कायव्वा । तदो पढमगाहाए पुव्वद्धम्मि एको अत्थो विहासिदो होदि । संपहि तत्व पडिबद्धस्स विदियस्स अत्थस्स विहासणट्ठमाह
* 'को व केणहिओ त्ति' एदस्स पदस्स अत्थो अवधाणमप्पाबहुधे ।
$ २३. पुवपरूवणादो अंतोमुहुत्तपमाणत्तेण सुणिच्छदाणं कोहादिकसायपडिबद्धजहण्णुकस्सद्धाणमोघादेसेहि जमप्पाबहुअविहाणं तमेदस्स पदस्स अत्थो ति भणिदं होइ। ... * गतियोंमें निष्क्रमण और प्रवेशकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय होता है ।
$२२. सर्वप्रथम निष्क्रमणकी अपेक्षा एक समय कालका कथन करते हैं-एक नारकी मानादि अन्यतर कपायमें उपयुक्त होकर स्थित है, एक समय आयुमें शेष है तब क्रोधकषायके उपयोगसे परिणत हो गया तथा एक समयतक रहकर वहाँसे निकला और तिर्यञ्च या मनुष्य हो गया, इसप्रकार क्रोधकषायमें उपयुक्त होनेका निष्क्रमणकी अपेक्षा जघन्य काल एक समयमात्र प्राप्त हो गया। अब प्रवेशकी अपेक्षा कहते हैं-एक तिर्यश्च या मनुष्य क्रोधकषायके साथ स्थित है, क्रोधकषायके कालमें एक समय शेष है तब मरकर नारकियोंमें उत्पन्न हुआ, प्रथम समयमें क्रोधमें उपयुक्त होकर स्थित रहा तथा दूसरे समयमें अन्य कषायरूप से परिणत हो गया। इस प्रकार प्रवेशका आश्रयकर एक समय काल प्राप्त हुआ। इसी प्रकार शेष कषायोंके एक समयमात्र कालकी योजना कर लेनी चाहिए । इसी प्रकार शेष गतियोंमें भी निष्क्रमण और प्रवेशकी अपेक्षा एक समयप्रमाण कालकी प्ररूपणा करनी चाहिए। तब प्रथम ग पाके पूर्वार्धमें कहे गये एक अर्थका व्याख्यान होता है। अब वहीं पर निबद्ध हुए दूसरे अर्थका व्याख्यान करनेके लिए कहते हैं__* किस कषायका काल किस कषायके कालसे अधिक है इस पदका अर्थ कषायोंके कालका अल्पबहुत्व है ।
$ २३. पूर्वमें की गई प्ररूपणा द्वारा अन्तर्मुहूर्तप्रमाणरूपसे सुनिश्चित क्रोधादि कषायोंसम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट कालोंका ओघ और आदेशकी अपेक्षा जो अल्पबहुत्वका कथन है वह 'को व केणहिओ' इस पदका अर्थ है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
१. ता०प्रतौ पि इति पाठो नास्ति ।