Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो७ कादूण पुच्छा कदा होदि। तं कथं ? 'एक्कम्हि भवग्गहणे' एवं भणिदे णिरयादीणमण्णदरभवग्गहणे त्ति वुत्तं होइ । 'एक्ककसायम्हि' एवं भणिदे कोहादीणमण्णदरकसायम्हि त्ति भणिदं होदि । 'कदि च उवजोगा' त्ति वुत्ते केत्तिया उवजोगा होंति ? किं संखेज्जा असंखेज्जा वा त्ति पुच्छिदो होइ । णिरयादिगदीसु संखेजवस्सियं असंखेजवस्सियं वा भवग्गहणमाधारभूदं ठवेदूण तत्थ कोहादिकसायाणमुवजोगपरिणमणवारा केत्तिया होंति ? किं संखेज्जा असंखेज्जा वा ? जम्हि वा णिरयादिभवग्गहणे अण्णदरकसायोवजोगा संखेजा असंखेज्जा वा जादा तम्हि सेसकसायोवजोगा केत्तिया होंति ? किं तप्पमाणा चेव होंति, आहो विसरिसपरिमाणा' त्ति जो विचारो सो वि एदिस्से गाहाए पुव्वद्धम्मि पडिबद्धो त्ति एसो एत्थ भावत्यो ।
७. 'एक्कम्हि य उवजोगे०' एदम्मि गाहापच्छिमद्धम्मि कोहादिकसायाणं संखेजासंखेजोवजोगे आधारभूदे कादण पुणो तेसु अदीदभवा केत्तिया होति त्ति भवाणभाधेयभूदाणमप्पाबहुअपुच्छा कदा होइ। तत्कथमिति चेदुच्यते 'एक्कम्हि य उवजोगे' एकस्मिन्नुपयोग इत्यर्थः । 'एक्ककसाए' क्रोधादीनामन्यतमकषायप्रतिबद्ध इति यावत् । बनाकर यह पृच्छाकी गई है कि एक भवग्रहणको आधार करके उसमें एक कषायसम्बन्धी उपयोग कितने होते हैं ?
शंका-वह कैसे? ___ समाधान–'एकम्हि भवग्गहणे' ऐसा कहने पर नरकादि गतियोंमें से अन्यतर भवमें यह कहा गया है। 'एक्ककसायम्हि' ऐसा कहनेपर क्रोधादि कषायोंमें से अन्यतर कषायमें यह कहा गया है । 'कदि च उवजोगा' ऐसा कहनेपर कितने उपयोग होते हैं ? क्या संख्यात उपयोग होते हैं या असंख्यात उपयोग होते हैं यह पूछा गया है। नरकादि गतियों में से संख्यात वर्षवाले या असंख्यात वर्षवाले भवको आधाररूपसे स्थापितकर वहाँ क्रोधादि कषायोंके उपयोग परिणमनके बार कितने होते हैं ? क्या संख्यात होते हैं या असंख्यात होते हैं ? अथवा जिस नरकादि भवमें अन्यतर कषायसम्बन्धी उपयोग संख्यात या असंख्यात हुए हैं वहाँ शेष कषायसम्बन्धी उपयोग कितने होते हैं ? क्या तत्प्रमाण ही होते हैं या विसदृश प्रमाणको लिये हुए होते हैं इस प्रकार जो विचार है वह भी इस गाथाके पूर्वाधमें प्रतिबद्ध है यह यहाँ भावार्थ है।
$ ७. 'एक्कम्हि य उवजोगे.' गाथाके इस उत्तरार्धमें क्रोधादि कषायसम्बन्धी संख्यात और असंख्यात उपयोगोंको आधार करके पुनः उनमें अतीत भव कितने होते हैं इस प्रकार आधेयभूत भवोंके अल्पबहुत्वकी पृच्छा की गई है।
शंका-वह कैसे ?
समाधान—'एक्कम्हि य उवजोगे' 'एक उपयोगमें' यह इसका अर्थ है। 'एक्ककसाए' क्रोधादि कपायोंमें से अन्यतम कषायसे प्रतिबद्ध एक उपयोगमें, यह उक्त कथनका तात्पर्य
१. आ० प्रती विसरिसपरिणामा।