Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [उवजोगो ७ १. उवजोगे त्ति जमणिओगद्दारं कषायपाहुडस्स पण्हारसण्हमत्थाहियाराणं मज्झे सत्तमं कोहादिकसायाणमुवजोगसरूवणिरूवयं तस्सेदाणिमत्थविहासणे कीरमाणे तदवलंबणीभूदं' गाहामुत्तमणुसरामो त्ति भणिदं होदि । संपहि किं तं सुत्तमिदि सिस्साहिप्पायमासंकिय तण्णिद्देसविसयं पुच्छावक्कमाह
* तं जहा।
२. सुगमं । (१०) केवचिरं उवजोगो कम्मि कसायम्मि को व केणहिओ।
___को वा कम्मि कसाए अभिक्खमुवजोगमुवजुत्तो ॥६३॥ 5 ३. एसा ताव उवजोगाणियोगद्दारे पडिबद्धाणं सत्तण्णं सुत्तगाहाणं मज्झे पढमा सुत्तगाहा । संपहि एदिस्से गाहाए अत्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा-एसा गाहा तिणि अत्थे परूवेइ-'केवचिरं उवजोगो कम्हि कसायम्हि' त्ति भणिदे कोहादीणं कसायाणमेकेक्कम्हि कसायम्हि एगस्स जीवस्स केत्तियमेत्तकालमुवजोगो होदि ? किं सागरोवमं पलिदोवमं पलिदोवमासंखेज्जभागमावलियमावलि० असंखे०भागं संखेज्जसमए एगसमयं वा त्ति पुच्छा कदा होदि । एवं पुच्छिदे सव्वेसिं कसायाण
१. कषायप्राभृतके पन्द्रह अर्थाधिकारोंके मध्य क्रोधादि कषायोंके उपयोग स्वरूपका निरूपण करनेवाला उपयोग नामक जो सातवां अनुयोगद्वार है, इस समय उसके अर्थका विशेष व्याख्यान करते हुए उसके आलम्बनभूत गाथासूत्रका अनुसरण करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब वह सूत्र कौन है इसप्रकार शिष्यके अभिप्रायको शंकारूपसे ग्रहणकर उसका निर्देश करनेवाले पृच्छावाक्यको कहते हैं
* वह जैसे।
२. यह सूत्र सुगम है।
* एक जीवका एक कषायमें कितने काल तक उपयोग होता है ? किस कषायका उपयोग अन्य किस कषायके उपयोगसे अधिक है और कौन जीव किस कषायमें पुनः पुनः एक उपयोगसे उपयुक्त रहता है ॥ ६३ ॥
$ ३. उपयोग अनुयोगद्वारसे सम्बन्ध रखनेवाली सात सूत्र गाथाओंमें यह पहली सूत्र गाँथा है। अब इस गाथाके अर्थकी प्ररूपणा करते हैं। यथा-यह गाथा तीन अर्थोंका करती है-'केवचिरं उवजोगो कम्हि कसायम्हि' ऐसा कहने पर क्रोधादि कषायोंमें से एक एक कषायमें एक जीवका कितने काल तक उपयोग रहता है ? क्या सागरोपम, पल्योपम, पल्योपमके असंख्यातवें भाग, एक आवलि, एक आवलिके असंख्यातवें भाग, संख्यात समय
१. ता० प्रती -भूत इति पाठः । २. आ० प्रती एसो इति पाठः ।