________________ रहता. निश्चय हो जाता है कि यह वही है। यह आदमी ही है, यह खंभा ही है, आदि-आदि। निश्चय के पश्चात् धारणा होती है। यह चौथा क्रम है ज्ञान का। जो निश्चय होता है वह हमारी धारणा में स्थिर हो जाता है। वह हमारे स्मृति-कोष्ठों में चला जाता है। धारणा लम्बे समय तक टिक जाती है। अवग्रह में थोड़ा समय लगता है, ईहा में थोड़ा. समय लगता है, अवाय में कुछ ज्यादा समय लगता है, किन्तु धारणा दीर्घकाल तक चलती है। उसका समय सबसे लम्बा है। ग्रहण, विमर्श और निश्चय का कालमान अल्प होता है। धारणा का कालमान दीर्घ होता है। वह वैसी-की-वैसी हजारों वर्षों तक बनी रह सकती है। धारणा का ही एक नाम है-वासना। धारणा का ही एक नाम है-संस्कार। धारणा का ही एक नाम है-अविच्युति। वह च्युत नहीं होती। वह टिकी रहती है। वह वासना बन जाती है। वह संस्कार बन जाती है। वही धारणा, वासना या संस्कार, किसी निमित्त को पाकर जब उदबद्ध होती है तब स्मृति होती है। स्मृति का हेतु है-वासना। स्मृति का हेतु है-संस्कार। स्मृति का हेतु है-धारणा। धारणा अच्छी है या बुरी, इसका कोई प्रश्न नहीं है। धारणा अच्छा परिणाम देती है या बुरा परिणाम-इसका भी प्रश्न नहीं है। वह मात्र स्मृति का कारण बनती है। कोई परिस्थिति, कोई परिवेश, कोई हेतु ऐसा मिला और जो बात स्मृति-कोष्ठ में थी, धारणा-पटल में थी, वह जाग गई और स्मृति के रूप में उभर आयी। हमें ज्ञान हो गया-यह वह है। जो शब्द सुना था, जो दृश्य देखा था, पूरा-का-पूरा चित्र स्मृति के आधार पर हमारे सामने आ जाता है। मनोविज्ञान इसे 'स्मृति-चित्र' कहता है। स्मृति का प्रतिरूप हमारे सामने आ जाता है। जैसा देखा था, जैसा सुना था, वैसा-का-वैसा स्मृति-पटल पर उभर आता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि संगीत के जो मधुर स्वर कभी सुने थे, वे किसी निमित्त को पाकर स्मृति-पटल पर उभरते हैं और तत्काल कानों में से स्वर गूंजने लग जाते हैं। यह केवल स्मृति है। इसी प्रकार जो दृश्य वर्षों पूर्व देखा था, जो स्मृति-पटल पर अंकित था, वह निमित्त के मिलते ही साक्षात्-सा हो जाता है। आकृति दीखने लग जाती है। मार्ग, मकान, बगीचे सब-कुछ 18 कर्मवाद