Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पछी सामां कांई बधाए वीतराग अवस्थाने पामेला होता नथी, एनेपण थोड़े घणे अंशे राग द्वेषतो होयज, छेज, अने ए रागद्वेषनो अग्निभारेला अग्निने आ मताग्रहीए फूंक मारी ने प्रदिप्त कर्यो, पछी प्रदिप्त थल अग्निने तुर्तमां ठारवा मां ने आवे तो लाखोनुं नुकसान करी बेसे छे, ए स्थितिना गुन्हेगार प्रथमनी ममत्वी व्यक्तिज के समूहज होयछे । गुजरातीमां कहेवत छे के " बोलवु न हतुं पण मोंडा मां आंगली नाखीने बोलावे त्यारे शुं करवुं” अर्थात् पोतानी मान्यता थी जुदी रीते आचरण राखनार ने "येन केन प्रकारेण " निंदवा तेने जुठा पाखंडी कही वगोववा नो धन्धो लई बेसनाराओ सामाने पराणे बोलवानी फरज पाड़े छे अने श्रीमान् मुनिवर्य श्री ज्ञानसुंदरजी ए पण कांइक एवुंज कर्यु छे " मूर्ति पूजाका प्राचीन इतिहास” नामनी पुस्तिका मुनिश्री लखी पण ते जो मंडनात्मक लखी होततो स्थानकवासी - अमूर्तिपूजक ना कोई पण पुस्तक सम्बन्धी कांई कहेवानुं होयज नहिं । पण प्रतिमाजी नो इतिहास लखता स्थानकवासी समाजने भांडवा काम कर्यु त्यारे श्री रतनलाल दोशीने आ पुस्तक लखवानी जरूर पड़ी, अन ते जरूरियात पूरवा माटे निवृत्ति परायण अने धर्म प्रचार करवा माटे त्यागी जीवन गुजारनार साधु-धर्म गुरुओनुं मुख्य कर्त्तव्य हतुं, अने छे, ते कार्य गृहस्थाश्रमनी अनेक प्रवृत्तिथी विंटाएल श्री रतनलाल दोशीए कर्यु छे, ते समाज ऊपर महान् उपकार कर्यो छे, अने जो अमूर्तिपूजक ( स्थानकवासी) समाजमां कांई पण कृतज्ञता होयतो श्री रतनलाल दोशीनो समाजे उपकार मानवो जोइए, वधु नहिं तो छेवट आ पुस्तकनी हजारो नकलो धनवानोए खरीद करीने गाम्मे गाम तो शुं पण घरोघर भेंट आपवी जोइए, म्हारी आ याचना धनिको सांभलशे ? स्वीकार शे? अने थोड़े अंशे पण सार्थक करशे ?
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