Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
२६१ ****李 **京*****京**** *****李****** साहुणि सावय सावियाओ विहि मग्गे बुहिसंति तेसं बहुणं हिलणाणं, जिंदणाणं, खिसणाणं, गरहिणाणं भविस्सइ।"
- अर्थात् - पांचवें स्वप्न में जो तुमने बारह फणों वाले काले नाग को देखा है, उसका फल यह है कि - भविष्य में बारह वर्ष का दुष्काल पड़ेगा, उसमें कालिक आदि सूत्र विच्छेद जायँगे। साधु द्रव्य रखने वाले होंगे, चैत्य स्थापना करेंगे, लोभ के वश होकर मूर्ति के गले में माला रोपण करेंगे। मन्दिर उद्यापन उजामणा करावेंगे। जिनबिंब स्थापना करेंगे विधिमार्ग से स्खलित होकर अविधिमार्ग में पड़ेंगे। तथा जो साधु साध्वी श्रावक और श्राविका उस समय विधिमार्ग में प्रवर्तने वाले होंगे, उनकी निंदा अपमान अपशब्दादि से विशेष रूप से करेंगे।
(४) संबोधप्रकरण में श्री हरिभद्र सूरि लिखते हैं कि - "संनिहि महाकम्मं जल फल कुसुमाइ सव्व सचित्त।
चेइय मठाइवासं पूयारंभाई निच्चवासित्तं।
देवाइ दव्वभोगं जिणहर शालाइ करणंच।" अर्थात् - चैत्यवाद से चैत्यवास का सम्बन्ध दिखाते हुए कहते हैं कि - प्रथम तो पूजा के लिये सचित्त जल फल, फूल आदि का आरम्भ करना शुरू हुआ, फिर देवादि के नाम से द्रव्य संचय देवद्रव्य भक्षण, जिन मन्दिरादि बनाना प्रारम्भ हुआ, और फिर चैत्य में वास करना चला।
(५) सन्देह दोलावलि में लिखा है कि -
"गडरीपवाहउ जे एइ नयर दीसई बहु जणेहिं, जिणग्गहकारवणाइ सो धम्मो सुत्तविरुद्धो अधम्मोय"
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