Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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१०. रायपसेणइय का भारी पाठ भेद होना तथा टीकाकार के कथन से वहाँ का पाठ कदाचित् टीकाकार का ही बनाया हुआ हो, यह सन्देह सुस्पष्ट है।
११, सूर्याभ की पूजा में शास्त्रकारों की सम्मति बताना सफेद झूठ है।
१२. प्रभुवन्दन, साधु सेवा, संयम पालन के फल से मूर्ति पूजा का फल समान दिखाना दिन दहाड़े आँखों में धूल डालना है।
१३. सूर्याभ नो “नम्मुत्थुणः” से मूर्ति को नहीं पर भाव सिद्धों को नमस्कार किया।
१४. “पूयणाबत्तियं" से फूलों से पूजन का अर्थ करना पक्ष व्यामोहता है।
१५. लोंकामच्छीय यति जो मूर्ति पूजक हैं वे श्रीमान् लोकाशाह के वंशज कहे जाने योग्य नहीं, क्योंकि वे उस पुण्य पुरुष की मान्यता के विरुद्ध मूर्तिपूजक हैं। उनका प्रमाण कुछ भी प्रभावजनक नहीं हो सकता।
१६. चमरेन्द्र ने मूर्ति का शरण लिया ही नहीं। न मूर्ति शरण देने योग्य ही हो सकती है।
१७. “देवाणं आसायणाएं" का अर्थ मूर्तियों की आशातना मानने वाले अल्पज्ञ हैं।
१८. आनन्द श्रमणोपासक को मूर्ति पूजक कहना सरासर मिथ्या है।
१६. अंबड़ श्रावक मूर्ति पूजक नहीं था, उववाई के पाठ में गड़बड़ पाई जाती है।
२०. तुंगिया के श्रमणोपासकों को मूर्ति पूजक बताने वाले
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