Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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परिशिष्ट
परिशिष्ट अनुसंधान पृ० २२६ पं० अंतिम के बाद। ' (२) भावनगर से प्रकाशित मूर्तिपूजक “जैन” पत्र ता० १६-५-४२ के अंक पृ० ४१६ में “प्राचीनता नुं खून' शीर्षक लेख से लिखा है कि -
"श्री समेतशिखर जी नी यात्रार्थे मधुवन गया त्यां सर्व मंदिर ना दर्शनकरी बाहर आवतां मधुवन तलेटी नां मन्दिरनी डाबी बाजुना होलमां नानी मोटी सफेत काला आरसनी प्रतिमा जी ना दर्शन करवा जतां एक दृश्य देखायुं, प्रतिमाजी प्राचीन देखाती पड़ती ज्यारे तेनी नीचेना लेख वाचतां ते लेखो मिटावी नांखेला तथा कोइमां श्रावक नुं नाम संवत् विगेरे प्राचीन हतुं अने प्रतिष्ठा करावनार आचार्य महाराजनुं नाम नवु खोदेल जोयुं मुनीम ने पुछतां एवो जवाब मल्यो के एक तपा गच्छीय महाराजे जुना लेखों जे खरतर गच्छी महाराजा ना नामना हतां तेनो नाशकरी पोताना तपा गच्छ ना आचार्यों ना नामनो लेख खोदाववो शरु कर्यो तेमज शिखरजी नी उपरनी टुको ना चरणो जे खरतर गच्छीय आचार्योना हस्ते प्रतिष्ठित थओल छे तेने पण रातना कारीगरो मोकली मिटावी दीधा छ।”
(उक्त लेख का प्रतिवाद ता० २३-६-४२ के जैन पत्र पृ० ५ में किया गया है किन्तु प्रतिमा के लेखों को मिटाने की बात उसमें भी मानी गई है।)
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