Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 360
________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा ******** *************** की पूजा नहीं होती, किन्तु जीवों की हिंसा तथा पूज्य का अपमान अनादर तथा विराधना होती है। २८. डॉ. हरमन जेकोबी का मूर्ति पूजा के विरुद्ध अभिप्राय अटल है। जोधपुर का अभिप्राय महत्वपूर्ण नहीं है । ३१५ २६. भरत चक्रवर्ती ने मन्दिर मूर्त्तियें बनाई, ऐसा कहने वाले दूसरे पाप के भागी हैं। ३०. श्रेणिक को मूर्ति पूजक गपौड़ शास्त्र ही बताते हैं । सर्वमान्य आगम नहीं । ३१. स्वर्ण गुलिका के साथ मूर्ति का सम्बन्ध पौराणिक गपौड़ा है। ३२. चंपानगरी में अरिहंतों के मन्दिर थे, ऐसा कथन प्रामाणिक नहीं है । ३३. जिन मूर्ति के सामने आलोचना करने का कहने वाले उत्सूत्र भाषी हैं। ३४. दाढ़ा पूजन धार्मिक क्रिया नहीं है। ३५. स्थापना सत्य का तात्पर्य मूर्ति पूजा नहीं, पर स्थापना को स्थापना, चित्र को चित्र मानने से हैं। न ३६. मूर्तियों की प्राचीनता से धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं, मूर्तियों के सभी लेख सच्चे हैं। मूर्ति को लेकर कई प्रकार के षड्यंत्र रचे गये और स्वार्थ साधा गया। उसी प्रकार संवत् लिखने में भी होना स्वाभाविक है। सर्वमान्य आगमों के सामने इसका कोई मूल्य नहीं । ३७. स्तूप निर्माण का कारण स्मारक तथा दाह आदि स्थानों को अपवित्रादि नहीं होने देने का है। पूजा के लिये नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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