Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 335
________________ २६० मूर्ति पूजा के विरुद्ध-प्रमाण संग्रह ****************** *********************** सुहृद आचार्य ने जनता का अज्ञान सर्वज्ञ भगवान् महावीर और गौतम गणधर के नाम से इस सूत्र रचना द्वारा दूर करने के इरादे से ऐसा किया हो तो आश्चर्य नहीं। क्योंकि जनता आचार्यादि के वचनों की अपेक्षा तीर्थंकर वचनों पर अधिक विश्वास वाली होती है। दूसरा यह एक प्रकार की रचना शैली भी है। कई आचार्य रचित ग्रन्थों में इसी प्रकार के प्रश्नोत्तरों का ढांचा दिखाई देता है, इस बीसवीं शताब्दी के गौतमपृच्छादि ग्रन्थ जिन्होंने देखे हों वे इस बात को सरलता से समझ सकते हैं, इसी प्रकार विवाह चूलिया के रचयिता ने भी शायद इसी शैली का अनुकरण किया हो? कुछ भी हो, पर यह तो सत्य है कि यह प्रश्नोत्तर तीर्थंकर और गणधर के बीच के तो नहीं है, क्योंकि उस समय इस प्रथा का जन्म ही नहीं हुआ था, तो प्रश्नोत्तर की उत्पत्ति ही कैसे हो? इतना होते हुए भी यह ग्रन्थ मूर्ति पूजक समाज का मान्य होने से उक्त उल्लेख से मूर्ति पूजा का विरोध तो स्पष्ट हो जाता है, शायद इसीलिये श्री आगमोदय समिति ने इसे छपवाने की कृपा नहीं की हो? . (३) व्यवहार सूत्र की चूलिका में श्रीमद्भद्रबाहु स्वामी श्री चन्द्रगुप्त राजा के पांचवें स्वप्न का फल बताते हुए कहते हैं कि - "पंचमए दुवालस फणिं संजुत्तो कण्ह अहि दिट्ठो तस्सफलं दुवालसवास परिमाणे दुक्कालो भविस्सई तत्थ कालिय सूयप्पमुहाणि सुत्ताणि वोच्छिज्जिसंति “चेइय ठवावेइ दव्वहारिणो मुणिणो भविस्संति, लोभेण माला रोहण देवल उवहाण उज्जमण जिणबिंब पइट्ठावणविहिं पगासिस्संति, अविहे पंथे पडिसई तत्थ जे केई साहु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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