Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२९४ मूर्ति पूजा के विरुद्ध प्रमाण संग्रह ************************************** * अने ते चलण तरीके उपयोग मां आवी शके नहि, बीजो रुपीआनी छाप त्रांबाना कटका उपर होय तो पण ते त्रांबानो कटको रुपीआ तरीके चाली शके नहि, त्रीजो त्रांबाना कटका उपर पैसानी छाप होय तो ते रुपीओ नज गणाय, अने चौथो भागोज एवोज छेके जेमां चांदी चोक्खी अने छाप पण रुपीआनी सांची होय तेनोज दुनिया मां रुपीआ तरीके व्यवहार थई शके अने चलण मां चाले।"
. (दीक्षानुं सुन्दर स्वरूप पृ० १७) जिस प्रकार चांदी का मुद्रायुक्त सिक्का ही रुपया माना जाता है, उसी प्रकार केवल ज्ञानादि गुण युक्त अरिहंत या तीर्थंकर ही वन्दनीय हो सकते हैं, किन्तु तांबे के टुकड़े पर रुपये की छाप वाले दूसरे भंग की तरह मूर्ति वन्दनीय नहीं हो सकती। उक्त उदाहरण सर्वथा उपयुक्त है।
(११) आचार्य विजयानन्द सूरिजी अज्ञान तिमिर भास्कर पृ० २९६ में लिखते हैं कि -
"कितनीक क्रिया को जे आगम में नहिं कथन करी है, तिन को करते हैं, और जे आगम में निषेध नहि करी है चिरंतन जनो ने आचरण करी है तिनको अविधि कहकर निषेध करते हैं और कहते हैं यह क्रियायों धर्मी जना को करणे योग्य नहि है किन किन क्रियायों विषे "चैत्य कृत्येषु स्नात्र बिंब प्रतिमा करणादि।"
अर्थात् - कितने ही लोग ऐसे हैं जो चैत्य करवाने, बिंब प्रतिमा बनवाने, स्नात्र पूजादि करने की क्रियाओं को अविधि कहकर निषेध करते हैं, क्योंकि आगमों में इनका कथन नहीं है। परन्तु पूर्व पुरुषों ने इसका आचरण किया है और आगम में इनका निषेध भी नहीं है।
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