Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मूर्ति पूजा के विरुद्ध प्रमाण संग्रह *************半***********************
पाठको! इतने प्रमाण मूर्तिपूजक समाज के विद्वानों-ग्रन्थकारों के आपके सामने पेश किये गये, अब थोड़े से अजैन विद्वानों के भी विचार देखिये -
अजैन विदान् और मूर्ति-पूजा जैनेतर समाज में भी बहुत से विद्वान् जो कि मूर्तिपूजक वातावरण में जन्मे, पले और बड़े हुए वे भी परिपक्व अभ्यास और दीर्घ मनन के पश्चात् यह स्वीकार कर चुके हैं कि मूर्ति-पूजा आत्मा के उत्थान में आवश्यक नहीं, किन्तु व्यर्थ है। कुछ प्रमाण भी देखिये
(१) काका कालेलकर साहब लोक जीवन में लिखते हैं कि -
"चैतन्य नी भूख मूर्ति थी शीरीते भागे। जीवंत मूर्ति उद्धार करे छे, अने निष्प्राण मूर्ति तो गलामा पत्थर बनीने डुबाडे छे"
(२) आचार्य पंडित चतुरसेनजी शास्त्री लिखते हैं कि -
"पाखण्ड में सब से पहिला नम्बर मूर्ति पूजा का है। दो हजार वर्ष से भी अधिक काल से इस पाखण्ड ने मनुष्य जाति को बेवकूफ बनाया है। आज संसार भर की सभ्य जातियों ने मूर्ति-पूजा को नष्ट कर दिया है। वह या तो कुछ जंगली जातियों में जो तातार के उजाड़ प्रदेश में है, अथवा अफ्रिका के असभ्य लोगों में या फिर अपने को सब से श्रेष्ठ समझने वाले हिन्दुओं में प्रचलित हैं। यहाँ हम संक्षेप में मूर्ति पूजा का इतिहास दिये देते हैं। ___ सबसे प्रथम मैं दृढ़ता पूर्वक आपको यह बता देना चाहता हूँ कि प्राचीन काल के हिन्दुओं का कोई मन्दिर न था और वे मूर्ति की पूजा नहीं करते थे। वेद में मूर्ति पूजा का कोई विधान नहीं है। वेद में
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