Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अंबड परिव्राजक और मूर्ति पूजा
और आगमोद्धारक स्वर्गीय पूज्य श्री अमोलकऋषिजी महाराज साहब ने भी अपने अनुवादित उववाई सूत्र पृ० १६३ में ऐसा ही पाठ दिया है, किन्तु जब हम आगमोदय समिति से प्रकाशित इसी सूत्र के पत्र ६७ के दूसरे पृष्ठ पं० ४ से इसी पाठको देखते हैं तो हमारी इस पाठ
"
विषयक उक्त शङ्का वास्तविक मालूम देती हैं। देखिये वह पाठ
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'अम्मडस्स णो कप्पइ अण्णउत्थिया वा अण्णउत्थिय देवयाणि वा अण्णउत्थिय परिग्गहियाणि वा चेइयाइं वंदित्तएवा, णमंसित्तए वा, जाव पज्जुवासित्तए वा णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंत चेइयाई वा । "
इस पाठ में और ऊपर बताये हुए दोनों पाठों में एक महत्वपूर्ण अन्तर है, सम्यक्त्व शल्योद्धार और हैदराबाद से प्रकाशित उववाई में अम्बड़ की अकल्पनीय और कल्पनीय दोनों प्रतिज्ञाओं में दोनों स्थानों पर “अरिहंत चेइयाई” पाठ है किन्तु आगमोदय समिति की प्रति में केवल एक ही स्थान पर " अरिहंत चेइयाइं" पाठ है, और एक में आनन्द पाठ की तरह केवल "चेइयाइं" शब्द ही है।
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इसी प्रकार विक्रम सं० १६६४ में सूरत से प्रकाशित उववाई सूत्र में भी पाठ है।
इस पर से स्पष्ट हो गया कि अम्बड़ सम्बन्धी उक्त पाठ में केवल एक स्थल पर ही " अरिहंत चेइयाई” पाठ है, दोनों जगह नहीं, स्व० पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी महाराज साहब ने शायद ऐसी ही प्रति का अनुसरण किया, जो शुद्ध नहीं हो । अस्तु,
हमारे विचार से यह पाठ और भी शोध खोज मांगता है, क्योंकि अब तक पूरी शोध नहीं हो सकी है। जब पूरी पूरी शोध होगी तब न
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