Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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द्रौपदी और मूर्ति पूजा **会********本***************本求学李**本书中 जिसका उल्लेख समकितसार भाग-२ में किया गया है। इसके सिवाय किशनगढ़ (राजपूताने) में भी एक प्राचीन प्रति है उसमें भी नमुत्थुण आदि वर्द्धित पाठ नहीं है। इस पर से आपको समझ लेना चाहिए कि समकितसार प्रथम भाग में दिया हुआ पाठ अशुद्ध है। इस पर से आपका अभिष्ट सिद्ध नहीं हो सकता।
श्रीमान् हर्षचन्द्रजी म. के नाम से झूठा प्रचार इसके सिवाय आपने श्रीमान् हर्षचन्द्रजी महाराज लिखित "श्रीमद् राजचन्द्र विचार निरीक्षण" नामक पुस्तक का कुछ अवतरण देकर द्रौपदी विषयक नमुत्थुणं पाठ सिद्ध करना चाहा है, यह भी आपका प्रपंच मात्र है क्योंकि श्रीमान् हर्षचन्द्रजी महाराज ने तो वहाँ द्रौपदी की मूर्ति पूजा को धर्म मानने का स्पष्ट रूप से खण्डन किया है तथा उसी पृष्ठ में कुछ ही आगे बढ़कर यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि -
“पण ए जग्याए ज्ञाता सूत्र मां द्रौपदी ना अधिकारे हालनी केटली प्रतिओं मां थोड़ो पाठ प्रक्षेप थयो होय एम केटलीक जुनी प्रतिओं मां जोतां मालूम पड़े छ।” (श्रीमद् राजचन्द्र विचार निरीक्षण पृ० १६) ___कहिये मित्र! हो गया आपके प्रपंच का खण्डन? इस प्रकार किसी एक अंश को पकड़ कर मिथ्या प्रचार करना क्या साधुओं का कार्य है? आपने भी जनता को चक्कर में डालने का मार्ग तो अच्छा पकड़ा, पर जब कोई अन्वेषक खोजकर विचार पूर्वक निर्णय करे, तब आपकी चालाकी प्रकट होते देर नहीं लगती।
इस प्रकार द्रौपदी के कथानक की ओट लेकर मूर्ति पूजा को धर्म कृत्य बताना और इसे आगम प्रमाण कह कर भोली भाली जनता को भ्रम में डालना आत्मार्थी पुरुषों का कार्य नहीं है।
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