Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
१६५
*****
**********
मैं इन मरुधर महारथी सुन्दर मित्र से पूछता हूं कि जब मूर्ति पूजा आचार विधान के सूत्रों में नहीं तो क्या अनाचार के सूत्रों में है ? यदि आप डॉक्टर साहब के इस अभिप्राय को सत्य और स्वच्छ हृदय का मानकर मूर्ति पूजा आचार प्रतिपादक सूत्रों में नहीं होने का स्वीकार करते हैं तो मैं आपसे यह भी पूछता हूँ कि यदि आपकी मान्य मूर्ति पूजा आचार विधान में नहीं होकर अन्य किसी कथा आदि के ग्रन्थों में हो तो उसका मूल्य ही क्या है? कथानकों में तो हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार, युद्ध आदि विषयक उल्लेख भी है तो क्या आचार विधान नहीं होने पर भी आप कथाओं आदि में होने से इन्हें मान्य कर लेंगे ?
सुन्दर बन्धु ? अब भी क्या हुआ? आप में या आपके विजय धर्मसूरिजी के वंशजों में मूर्ति पूजा आत्म-कल्याण उपादेय और प्रभु वीर की आज्ञा युक्त सिद्ध करने की शक्ति हो तो शीघ्र ही वैसे प्रमाण जाहिर करिये जिससे सारा बखेड़ा मिट जाय ।
सुन्दरजी लिखते हैं कि “आचार्य महाराज ने डॉक्टर साहब को भगवती, ज्ञाता, उपासक दशांग, प्रश्न व्याकरण, उववाई, राज प्रसेणी, जीवाभिगम आदि अनेक शास्त्रों में मूर्ति पूजा विषयक पाठ बताये ? डॉक्टर साहब को बड़ा ही आश्चर्य हुआ तथा सत्य हृदय में मूर्त्ति पूजा को सहर्ष स्वीकार किया । "
बड़े आश्चर्य का विषय हैं कि - पहले तो डॉक्टर साहब बिना
यह अभिप्राय दे रहे हैं - "अंगों और उपांगों में कोई खुलासा जिक्र मूर्ति पूजा का नहीं है।" और इधर सुन्दर मित्र गिना रहे हैं कि ये सूत्र भी अंगोपांग में के ही हैं, फिर पहले अनुमति देते समय तो सूत्रों में मूर्ति पूजा का जिक्र नहीं था और बाद में आ गया, इसका खास कारण हमें तो यही मालूम हुआ है कि डॉक्टर साहब एक तो आभार में
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only