Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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प्रतिष्ठा अविधि करे, अंजनशलाका हो? करे आरम्भ घोर। कल्पित ग्रन्थ बनावीने, साहु थोड़ा हो? मल्या बहु चोर। सु० १६
(ढाल १२) उठे पाछली रातना, संघ चाले हो? फरे गामो गाम। साधु साध्वी राते चालतां, निंदा हो? होवे ठामो ठाम। सु० १५ उनुं पाणी करे रातना, घड़ा भरी हो? बाइयों रहे लार। तेहज पाणी वापरे, यात्रा नामे हो? संयम जावे हार। सु० १६ मर्यादा मुनिवर तजी, संघ तणी हो? करे कोशीश। ऊंचो धर्यो आचारने, शुं लखुं हो? जाणो जगदीश। सु०६ नाम लेवे यात्रा तणो, साथे राखे होय गाड़ी ने माल। दाल बाटी ने चूरमा, अही थी हो? लाग्यो मझानो ताल। सु० १० साधवी हो साथे रहे विधवा हो? रहे दशबीस।
साधु कारण तम्बु रहे, तम्बु कारण हो? गाड़ी ने ऊंट। जीव हणाय छ कायना, पूछे थी हो? वली बोले झूट। सु० १३
(ढाल २३) पाठक बन्धुओ! अब तो स्पष्ट हो गया कि - मूर्ति पूजक महात्मा लोग मन्दिरों और मूर्तियों के पक्ष में पड़ कर अपने साधुत्व को भी भूल गये हैं। और सुनिये - ____श्रीमान् ज्ञानसुन्दर जी महाराज जो कि मूर्ति पूजक समाज में इतिहास प्रेमी कहलाते हैं, आपने साधुमार्गी समाज की निंदा कर साधारण जनता को भ्रम में डालने के लिए जो मूर्ति पूजा का प्राचीन इतिहास नामक कल्पित ग्रन्थ निर्माण किया है। (जिसका कि यह उत्तर ग्रन्थ है) उसके पृ०१३६-१३७ तथा ३६१-३६२ में आपने श्री केशी
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