Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बत्तीस सूत्रों के नाम से गप्प ******************农学术字学***学************
२. यही दशा सूत्र कृतांग की टीका की है, यह भी बिना सूत्र । की वृत्ति है, अतएव यहाँ भी सुन्दर बन्धु प्रतिज्ञा भंजक ही ठहरे।
३-४. ठाणांग, समवायांग में मूर्ति पूजा करने की कहीं भी आज्ञा नहीं। अतएव यह प्रयास भी व्यर्थ है, यदि ठाणांग में शाश्वती प्रतिमाओं के उल्लेख का कहा जाय तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि वे मूर्तियें तीर्थंकरों की होना संभव नहीं। (विशेष के लिये देखो सूर्याभ प्रकरण) ।
५-६-७. भगवती, ज्ञाता, उपासकदशांग के विषय में पहले पृथक्-पृथक् प्रकरण द्वारा विवेचन कर आये हैं, देखो तुंगिका के श्रावको, द्रौपदी और आनंद प्रकरण।
८-६. अंतकृद्दशांग और अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र में सुन्दर मित्र ने "बहुला अरिहंत चेइया" पाठ होना बताया यह बिलकुल .. ठंडे प्रहर की गप्प ही है।
१०. प्रश्न व्याकरण के “चेइय?" शब्द पर से आप अर्थ करते हैं कि "किसी भी चैत्य मन्दिर की आशातना होती हो तो जैसे बने वैसे उसको दूर करे या करावे।" किन्तु यह अर्थ ठीक नहीं है, प्रश्न व्याकरण सूत्र में यह शब्द निम्न पाठ के साथ आया है।
___ "अहे केरिसए पुणाई आराहए वयमिणं? जे से उवहिभत्तपाणसंगहणंदाणकुसले-अच्चंत, बाल, दुव्वल, गिलाण, वुड्डमास खमणपवत्ति, आयरिय, उवज्झाए, सेह, साहम्मिय, तवस्सी, कुल, गण, संप, पेइयटे निज्जरट्टी वेयावच्चं अणिस्सियंदसविय बहुविहंकरेति।"
(प्र० श्रु० २ अ० ३)
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