Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२६८ क्या टीका आदि भी मूल की तरह माननीय है? ******学学会学学****************六字字字卒卒** ___“मारुं मानवं छे के कोइ पण टीकाकारे मूलना आशयने मूलना समयना वातावरण ने ध्यानमां लइने स्पष्ट करवो जोइए, आरीते टीकाकारनारो होय तोज खरो टीकाकार होइ शके छे, परन्तु मूलनो अर्थ करती वखते मौलिक समय ना वातावरण नो ख्याल न करता जो आपणे परिस्थिति नेज अनुसरिए तो ते मूल नी टीका नथी पण मूल नुं मूसल करवा जेवू छे हुँ सूत्रों नी टीकाओ सारी रीते जोइ गयो छु परन्तु तेमां मने घणे ठेकाणे मूल नुं मूसल करवा जेवू लाग्युं छे, अने ते थी मने घणुं दुःख थयुं छे, आ सम्बन्धे अहिं विशेष लखवु अप्रस्तुत छे, तो पण समय आव्ये "सूत्रो अने टीकाओ'' ए विषे हुं विगतवार हेवाल आपवानुं मारुं कर्त्तव्य चूकीश नहीं, तो पण आगल जणावेला श्री शीलांक सूरिए करेला आचारांग ना केटलाक पाठों ना अवला अर्थों उपर थी अने आ चैत्य शब्दना अर्थ उपर थी आपसौ कोइ जोइ शक्या हशो के टीकाकारों ए अर्थों करवामां पोताना समय नेज सामो राखी केटलुं बधुं जोखम खेडयुं छे। हुं आ बाबत ने पण स्वीकार करूं छु के जो महेरबान टीकाकार महाशयोंए मूल नो अर्थ मूलना समय प्रमाणेज कर्यों होत तो जैन शासन मां वर्तमान मां जे मतांतरों जोवा मां आवे छे ते घणा ओछा होत, अने धर्म ने नामे आq अमासर्नु अंधारुं घणुं ओर्छ व्यापत"
(पृ० १२३) .......जे वात अंगो नां मूल पाठों मां नथी, ते वात तेना उपांगो मां, नियुक्तिओ मां, भाष्यमां चूर्णिओमां, अवचूर्णिओ मां, अने टीकाओ मां शीरीते होइ शके? उपांगो, नियुक्ति ओ भाष्यों, चूर्णिओ, अवचूर्णिओ, अने टीकाओ एबधा ग्रन्थो एटला माटेज लखाय छे-लखाया छे के कोइ प्रकारे मूलनी वस्तु स्पष्ट थाय, नहिं के मूलमां रहेली कोई जातनी अपूर्णता ने ते ग्रन्थो पूरी करे।” (पृ० १३१)
(जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानी)
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