Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२८४ मूर्ति पूजा के विरुद्ध प्रमाण संग्रह
********************** ******************* विषयों में एक अक्षर मात्र भी नहीं मिलता। यह उपेक्षा भी मूर्ति पूजा की मान्यता आगम विरुद्ध सिद्ध करने में प्रबल शक्ति वाली है।
(७) सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कन्ध, ठाणांग आदि आगमों में श्रावक धर्म का विवेचन है, जिसमें पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत, ग्यारह प्रतिज्ञा (प्रतिमा) आदि का उल्लेख है, किन्तु मूर्ति पूजा के लिए सभी सूत्रों ने एकदम चुप्पी साधी है, यह उपेक्षा भी हमारे मूर्ति पूजक भाइयों की श्रद्धा का विरोध करती है।
(८) उववाई सूत्र में भगवान् महावीर की आत्मकल्याणकारी देशना लिखी है, जिसमें मुनियों के महाव्रत और श्रावकों के अणुव्रतादि द्वादशव्रत आदि का पृथक्-पृथक् निरूपण किया गया है, किन्तु इस एकान्त हितकारी धर्मोपदेश में भी प्रभु ने मूर्ति को याद नहीं किया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रभु महावीर को मूर्ति पूजा में धर्म मानना इष्ट नहीं था, न उस समय इस मान्यता का अस्तित्व ही था। ___(6) मोक्षमार्ग के मुख्य चार अंग - ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, इन चारों में मूर्ति के लिये अणुमात्र भी स्थान नहीं।
(१०) स्थानांग सूत्र में श्रावक के तीन मनोरथ बताये हैं, तद्यथा - १ आरम्भ परिग्रह को त्यागने की भावना २ श्रमणधर्म स्वीकार करने की और ३ पंडित मरण की। इन तीनों भावनाओं में मूर्ति बनवाने या पूजने अथवा संघ निकालने आदि की भावना का नाम ही नहीं है। इससे भी मूर्ति पूजा अनुपादेय ठहरती है।
(११) इसी सूत्र के चौथे स्थान (उ० ३) में भार वहन करने वालों के लिए चार विश्राम स्थान लिखे हैं, जिसमें तीसरा विश्राम स्थान नागकुमार सुवर्णकुमार के देवालय का होना तो बताया, पर अर्हन् मन्दिर का यहाँ नाम ही नहीं लिखा, इतना ही नहीं इस विश्राम
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