Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२८६
***
मूर्त्ति पूजा के विरुद्ध प्रमाण संग्रह
***********************
-
****
(१६) वैसे ही आनन्दादि श्रमणोपासकों के अनेकों चरित्रों इतिहासों के विस्तृत उल्लेखों पर से यह पाया जाता है कि उन्हें भी मूर्ति की आवश्यकता नहीं हुई और बिना मूर्ति के ही उन्होंने आत्मकल्याण साधा। ऐसी सूरत में यह स्पष्ट है कि आत्मकल्याण रूपी धर्म से मूर्ति पूजा का कोई वास्ता नहीं है।
( २० ) उत्तराध्ययन सूत्र में सम्यक्त्व और उसके लक्षण का दिग्दर्शन कराया गया, किन्तु उसमें भी मूर्ति या मन्दिर से सम्यक्त्व प्राप्त होना नहीं बताया । अतएव सिद्ध हुआ कि मूर्ति पूजा से धर्म का सर्वथा सम्बन्ध नहीं है ।
(२१) संसार में सर्वोत्तम मांगलिक, उत्तम और शरणभूत केवल चार स्थान हैं - १ अरिहंत २ सिद्ध ३ साधु और ४ धर्म । इसमें मूर्ति के शरण को स्वीकार नहीं किया गया।
(२२) साधुओं के संयम पालन में सहायक उपकरणों में मूर्ति या स्थापनाचार्य नामक कोई उपकरण नहीं है, इससे भी यह अस्वीकार्य ठहरती है।
(२३) नमस्कार मन्त्र के पांच पदों में मूर्ति को अणुमात्र भी स्थान नहीं है।
(२४) भगवती आदि सूत्रों में भगवान् महावीर स्वामी और गौतम गणधर के हजारों प्रश्नोत्तर लिखे हैं उनमें ऐसा एक भी प्रश्न नहीं कि जिसमें मूर्ति पूजा में धर्म मानने वालों के पक्ष को कुछ भी सहारा मिल सके।
Jain Education International
(२५) छेद सूत्रों में अनेकों बातों का प्रायश्चित्त विधान मिलता है, किन्तु मूर्ति के दर्शन नहीं करने आदि का प्रायश्चित्त किसी स्थान पर नहीं । अतएव इसे हेय मानना असंगत नहीं ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org