Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२७० मूर्ति पूजा विषयक ग्रन्थों की अप्रामाणिकता ****空***李宗学学**本本空公安学学会学学家安安安安安安安安安安安安安 कर डाली........ऐसी स्थिति में महावीर के पुत्र होने का दम भरने वाला एक समुदाय उस साहित्य में भी अनेक प्रकार की त्रुटियों के स्वप्न देख रहा है, यह कितने दुःख और खेद की बात है।" आदि -
इस प्रकार सुन्दर मित्र मूलागमों से एकदम विपरीत जाने वाले ग्रन्थों की भी भूरि-भूरि प्रशंसा कर उन्हें आगम सम्मत तथा दृष्टिवाद के अंश बता रहे हैं, साथ ही ऐसे अप्रामाणिक ग्रन्थों को नहीं मानने वाली समाज पर खेद प्रकट कर रहे हैं, किन्तु यह सब प्रयास गोबर को गुड़ मानने के समान हास्यास्पद है। ऐसा ही कपोल कल्पित कथन चैत्यवासी भी करते थे, वे कहते थे कि चैत्यवास का समर्थन आचार्यों ने दृष्टिवाद अंग के आधार से ग्रन्थों में किया है। वे ग्रन्थ भी उन महात्माओं (?) ने कपोल कल्पित बना लिये थे, जिनका खंडन जिनवल्लभ सूरि ने संघपट्टक में किया था, संघपट्टक की प्रस्तावना के चौथे पृष्ठ में लिखा है कि -
“आ अरसा मां चैत्यवास ने सिद्ध करवा माटे आगमना प्रतिपक्ष तरीके निगमना नाम तले उपनिषदां ना ग्रन्थो गुप्त रीते रचवामां आव्या अने तेओ दृष्टिवाद नामना बारमा अंगना त्रूटेला कडका छे एम लोकोने समजाववा मां आव्यु।'
सुज्ञ पाठक वृन्द! जिस प्रकार कपोल कल्पित ग्रन्थ चैत्यवासियों ने तैयार किये थे और उन्हें दृष्टिवाद का अंश बताया था, उसी प्रकार सुन्दर मित्र भी आगम विरोधी और हिंसा प्रवर्तक विधानों से भरे हुए कपोल कल्पित ग्रन्थों को दृष्टिवाद का हिस्सा कह कर मानने का आग्रह करते हैं। किन्तु यह ध्यान में रखना चाहिये कि जैनागमों में कहीं भी आरंभवर्द्धक तथा त्रस स्थावर जीवों की हिंसा करने करवाने और वैसा उपदेश देने का विधान ही नहीं है, न किसी व्यर्थ क्रिया को
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