Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा २६१ 学学会学术字************************************
१२. उववाई १३. रायपसेणइय और १४. जीवाभिगम इन तीनों सूत्रों के विषय में अंबड़ श्रावक और सूर्याभ प्रकरण में विस्तृत विचार किया गया है।
१५. पन्नवणा सूत्र के भाषा पद में जो ‘ठवणा सच्चा' लिखा है उसका मतलब मूर्ति पूजा से नहीं, किन्तु स्थापना को स्थापना मानने से है और स्थापना कई प्रकार की और किसी भी वस्तु की हो सकती है, इसमें मूर्ति पूजा करने का नाम निशान भी नहीं है, यह प्रमाण तो उसे दिखाना चाहिए जो स्थापना (मूर्ति) को ही (मूर्ति भी) नहीं मानते हों। अथवा सुन्दरमित्र को ही इससे बोध लेना चाहिए कि जब तक हम स्थापना को स्थापना की सीमा में रहकर नहीं मानेंगे तब तक स्थापना सत्य के मानने वाले नहीं होकर सीमोल्लंघन करने से इस सूत्र के उत्थापक होंगे। दूसरा जब स्थापना सत्य का भाव सत्य के समान ही आदर करेंगे तो दोनों में भेद ही क्या रहा? अतएव इन्हें स्थापना को केवल स्थापना तक ही मानना चाहिए, पूजादि से भाव तक नहीं ले जाना चाहिये। यह तो उल्टा सत्य के बजाय असत्य करना है। अतएव यह प्रमाण भी आपको विफल मनोरथ सिद्ध करता है। अधिक के लिए "स्थापना सत्य में समझ फेर” नामक प्रकरण देखो।
१६. जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति १७. चन्द्र प्रज्ञप्ति १८. और सूर्यप्रज्ञप्ति का नाम लेना भी ठाणांग सूत्र की तरह निरुपयोगी है।
१९. निरियावलिका सूत्र में काली आदि रानियों का मूर्ति पूजा करना आदि बतलाना भी दिन दहाड़े आँखों में धूल डालने के समान है। इसी तरह २०. कप्पवडंसिया २१. पुप्फिया २२. पुप्फचूलिया और २३. वन्हिदशा का नाम लेकर उनमें मूर्ति पूजा बतलाना एकान्त
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