Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बत्तीस सूत्रों के नाम से गप्प **********年*************************老****** गपोड़ शास्त्रियों का काम है, मालूम होता है सुन्दर मित्र बड़े साहसी हैं तभी दिल खोल कर गप्पें उड़ा रहे हैं।
२४. दशवैकालिक सूत्र की चूलिका और २५. उत्तराध्ययन की टीका का प्रमाण भी कल्पित कहानी के समान अमान्य है जो कि सुन्दर जी के पक्ष को स्पष्ट निर्बल बता रहे हैं।
२६. अनुयोगद्वार सूत्र के निक्षेपाधिकार का नाम लेकर सुंदर मित्र लिखते हैं कि “स्थापना निक्षेप में तीर्थंकरों की व आचार्य की स्थापना करने का विस्तृत उल्लेख है।" सुन्दर जी का यह लिखना भी भोले भोंदुओं को चमका देने के समान धोखेबाजी से भरपूर है। यही बात (२७) नंदी सूत्र के नाम की है।
२८. व्यवहार सूत्र के प्रमाण विषयक स्वतंत्र प्रकरण देखो।
२६. बृहद्कल्प ३०. निशीथ के भाष्य चूर्णि का प्रमाण देना भी गुड़ मांगने वाले को गोबर दिखाने वाले मूर्खराज के सदृश्य है।
३१. दशा श्रुतस्कन्ध में राजगृही के वर्णन में बहुत से मन्दिरों का अस्तित्व बतलाना भी सर्वथा मिथ्या है।
३२. आवश्यक सूत्र में “अरिहंत चेइयाणि" आदि पाठ के होने का लिखना हमारे सामने बिलकुल व्यर्थ है, क्योंकि यह पाठ मूर्तिमति महानुभावों के ही आवश्यक में है, इन लोगों का आवश्यक' भी अजीब ढंग का है, जिसको यहाँ लिखकर विषयांतर करना नहीं चाहते, किन्तु इतना अवश्य कहेंगे कि श्री मदनुयोगद्वार सूत्र में जो आवश्यक का स्वरूप बताया हैं उसमें “अरिहंत चेइयाणि" आदि कल्पित पाठ का लेश भी नहीं है और न चैत्य वंदन का ही नाम है, यह सब करामात इस मन्दिर मूर्ति के कारण ही हुई है। सुन्दर मित्र को हमारे सामने ऐसे फूटी कौड़ी से भी गये बीते प्रमाण हमारे मान्य सूत्र पाठों के नाम से रखते हुए लज्जित होना चाहिये।
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