Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
२५७
उक्त प्रतिज्ञा में सुन्दर बन्धु बत्तीस सूत्रों के पाठ से मूर्ति पूजा सिद्ध करने का इकरार करते हैं, किन्तु पाठक जब इस प्रतिज्ञा के बाद के जितने भी प्रमाण देखेंगे, वे सब उल्टे ही नजर आयेंगे । प्रतिज्ञा में आप सूत्रों के पाठ दिखाने का लिखते हैं और प्रारम्भ ही में नियुक्ति का प्रमाण देकर अपनी प्रतिज्ञा की समाप्ति भी कर देते हैं, यह सुन्दर चालाकी का ज्वलंत प्रमाण है । अब इनके सभी संक्षिप्त प्रमाणों की छानबीन भी थोड़े ही में देखिये
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१. आचारांग सूत्र से मूर्ति पूजा सिद्ध करने के लिए आपने नियुक्ति का प्रमाण दिया है, किन्तु यह भी मिथ्या है, प्रथम तो यह कथन मूल पाठ के किसी भी शब्द से सम्बन्ध नहीं रखता। जबकि यह नियुक्ति आचारांग सूत्र की कही जाती है, तब इस में जो भी कथन हो वह आचारांग के आशय से युक्त ही होना चाहिये ? जब आचारांग में मूर्ति या तीर्थं आदि का नाम भी नहीं, तब नियुक्ति में यह सब कहाँ से आ गया? कहना नहीं होगा कि यह सब करामातें मूर्तिमति महानुभावों की ही है, किसी मन चले महानुभाव ने चतुर्दश पूर्वधर श्री भद्रबाहु स्वामी के नाम से जनता में फैलाने के लिए यह कार्यवाही की ही तो कोई आश्चर्य नहीं है और सूत्र पाठ जो कि स्थानकवासी समाजका मान्य है, उसका प्रमाण देने की प्रतिज्ञा करने वाले सुन्दर साहब किस मुंह से हमें नियुक्ति दिखाते हैं? हाँ यदि सूत्र में संक्षिप्त रूप से भी इस विषय का उल्लेख होता और उसका विस्तार नियुक्ति में किया गया होता, तब तो फिर भी विचार का अवकाश था, किन्तु सूत्र में नाममात्र भी नहीं - संकेतमात्र भी नहीं, तब उसी सूत्र की कही जाने वाली नियुक्ति में ऐसा उल्लेख कहां से आ गया ? अतएव सुन्दर बन्धु का यह प्रयास सर्वथा व्यर्थ है ।
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