Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बत्तीस सूत्रों के नाम से गप्प *****************李李李李李******************* ही नहीं सकता है। जैसे कि - तीर्थंकर प्रभु इसी नाम से अधिक विख्यात हैं, पर "बुद्ध" नाम से नहीं फिर भी समवायांग ३४ में भगवान् के ३४ अतिशयों के वर्णन में “बुद्धातिशय' कहा है, तो क्या इस शब्द पर से ही इन ३४ अतिशयों को तीर्थंकर अतिशय नहीं मानकर 'बुद्धदेव' के अतिशय मानेंगे? नहीं, सर्वथा नहीं। बस इसी तरह समझो कि चैत्य शब्द का ज्ञान तथा साधु शब्द से स्वल्प उपयोग होने पर भी ये अर्थ भी होते हैं। ___ मित्रवर! आश्चर्य तो इस बात का है कि जिस मूर्ति पूजा को आप धर्म का मुख्य अंग और अवश्य करणीय मानते हैं, उसके लिए सर्व मान्य विधि नहीं बताकर न आगमोक्त आज्ञा प्रमाण में रखकर खाली शब्दों की खींचतान करें यह कहाँ तक ठीक है? समझदारों के समक्ष आपको लज्जित होना पड़ेगा, आपकी समाज के विद्वान् पं० बेचरदासजी ही कहते हैं कि - आचार विधि का निर्देश शब्दों याकथाओं की ओट से नहीं होता बल्कि स्पष्ट विधि रूप से होता है, जिसके लिए आज्ञा नहीं, वह विधि ही क्या? अतएव समझिये और अपने मिथ्या हठ को छोड़ दीजिये।
(३६) बत्तीस सूत्रों के नाम से गप्प
मिस्टर ज्ञानसुन्दर जी गपौड़े मारने में तो बड़े होशियार हैं, समझते होंगे कि संसार में सभी मूर्ख और अन्धे ही होंगे। आप अपने पोथे के चौथे प्रकरण के पृ० ११० में निम्न प्रतिज्ञा करते हैं कि -
__ “अब हम स्थानकमार्गी समाज के माने हुए ३२ सूत्रों के अन्दर मूर्ति पूजा विषयक सूत्रों में पाठ है उसका संक्षिप्त में दिग्दर्शन करवा देते हैं।"
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