Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चैत्य शब्द के अर्थ **********************************************
पाठक वृन्द! अब जरा उक्त दो या तीन अर्थों से भिन्न अन्य अर्थ इन्हीं के मूर्ति पूजक ग्रन्थकारों की ओर के देखिये -
१. कल्प सूत्र (खेमविजयजी गणिवाला) पृ० ६० पं० ६ में “वेयावत्तस्स चेइयस्स' लिखा है और इसका अर्थ "व्यंतर, मन्दिर" किया है।
२. भगवती सूत्र के टीकाकार श्री अभयदेव सूरि निम्न अर्थ करते हैं।
“चेइए" ति चितेर्लेप्यादिचयनस्य भावः कर्मवेति चैत्यंसंज्ञाशब्दत्वादेवबिम्बम्तदाश्रयत्वात्तद्गृहमपि चैत्यम्तच्चेइव्यंतरायतनम्, नतुभगवतामर्हतायतनम्"
(यहाँ व्यंतरायतन अर्थ कर अर्हत् प्रतिमा का निषेध किया है।) ३. ठाणांग सूत्र ठा० ३ उ० १ की टीका में।
चैत्यमिव जिनादि प्रतिमेव चैत्यं “श्रमणं" (इस स्थान पर चैत्य शब्द का अर्थ साधु किया है।) ४. रायपसेणइय सुत्त में - “चैत्यं सु प्रशस्त मनो हेतुत्वात"
(इस स्थान पर स्वयं प्रभु को ही सुप्रशस्त मन के हेतु चैत्य शब्द से कहा है)
५. अनेकार्थ कोष में श्री हेमचन्द्राचार्य लिखते हैं - "चित्यं मृतक चैत्येस्यात्(मृतक चैत्य) ।
६. श्री हरिभद्र सूरिजी "ललितविस्तरा'' में निम्न अर्थ करते हैं।
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