Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
२५१ **** ********李*******学李本学学学*******
यदि वर्तमान कोषकारों या ग्रन्थकारों में से किसी ने भी चैत्य शब्द का अर्थ जैन मन्दिर भी किया हो तो उसका मुख्य कारण यह है कि हमारे मूर्ति-पूजक बन्धुओं ने एक लम्बे समय से इस शब्द को मन्दिर-मूर्ति के लिए रूढ़ बना लिया और ग्रन्थों में भी इस प्रकार का प्रयोग किया तथा श्री हेमचन्द्राचार्य ने भी अपने कोष में इस शब्द का अर्थ जिन मन्दिर, जिन मूर्ति किया, इसीसे वर्तमान रूढ़ि को देखकर कोई कोषकार या ग्रन्थकार इस शब्द का जिनमन्दिर या जिन मूर्ति अर्थ करे तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, किन्तु इससे यह नहीं माना जा सकता कि आगमों में चैत्य शब्द से अर्हन् मन्दिर या अर्हत् प्रतिमा का उल्लेख किया गया हो।
मित्र ज्ञानसुन्दर जी! अब आप ही कहिये कि - श्री हेमचन्द्राचार्य और विजयानंद सूरि आदि ने चैत्य शब्द के केवल दो तीन ही अर्थ करके क्या शब्द शास्त्र और आगमों की विराधना नहीं की? आश्चर्य तो इस बात का है कि आप ही के महामान्य टीकाकार और ग्रन्थकार जब चैत्य शब्द के कई अर्थ करते हैं, तब आपके श्री विजयानंदजी अन्य अर्थों के लिए केवल शून्य ही ठोंक दें, यह कितनी उत्सूत्र प्ररूपणा है? वास्तव में चैत्य शब्द का अर्थ जिन मंदिर और जिन मूर्ति ही करके मूर्ति पूजकों ने जड़ पूजा द्वारा मानव समाज का पतन और शिथिलाचार का पोषण ही किया है, मित्रवर! जरा अपनी ही समाज के प्रतिभाशाली विद्वान् पं० बेचरदासजी के इस विषयक निम्न उद्गार तो पढ़ लीजिये।
"ते विषे मारे एटलुंज कहेवानुं के प्रचलित देवालय के मूर्ति ए कांई चैत्य शब्द नो प्रधान अर्थ के मूल अर्थ नथी, एटलुंज नहीं पण ए बन्ने अर्थों तद्दन पछीना अने रुढ़िना करेला छ।'
(जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानी पृ० १२२)
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