Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
२२५ *************学教学*******李********來* एवं प्रमाण सहित असत्य ठहराया है। जिन्हें अधिक जानना है वे दोनों लेख पढ़कर समझलें, यहाँ विस्तार भय से इतना ही संकेत करते हैं।
उक्त पाँच प्रमाण (जो कि लिखते समय लेखक को याद आये) हमारी इस बात को पुष्ट करते हैं कि जिस प्रकार स्वार्थ तथा प्रशंसा इच्छुक और पाखण्ड प्रवर्तन की भावना वालों ने धोखा देही करने में कुछ भी कमी नहीं की, उसी प्रकार मूर्तियों को प्राचीन बताने के लिए कुछ वर्षों (शताब्दियों) पूर्व के लेख खुदवाकर उन्हें यथा स्थान रख दिया हो, या भूमि में गाढ़ दिया हो तो क्या बड़ी बात है? दश, पन्द्रह सैंकड़ों में एक दो सैंकड़े चल भी सकते हैं। जैसे कि -
वर्तमान में इसी भारतवर्ष की न्यायालयों में लेन देन की नालिश (दावा) करने की समय-सीमा (मुद्दत) प्रायः तीन वर्ष की है। इस निर्धारित समय के अन्दर ही यदि लेनदार दावा करदे तो वह स्वीकृत होता है, किन्तु इस समय से एक दिन भी अधिक निकल जाने पर लेनदार न्यायालय में दावा करने का अधिकारी नहीं रहता। उसका सब रुपया डूब जाता है, इतना होने पर भी कई मामले ऐसे भी होते हैं कि जिसमें किसी कारण या गफलत से दावेदार नियमित समय को चूक जाता है, और समय निकलने पर फिर खाते की तारीख माह या सन् के अङ्कों में चतुराई से हेर फेर करके दावा कर देता है। यद्यपि ऐसे कई मामलों का न्यायाधीशों द्वारा भंडा फोड़ हुआ है, तथापि यह तो नहीं कहा जा सकता कि ऐसे सभी मामले पकड़े गये हों, हो सकता है कि ऐसे मामलों में भी प्रतिवादी या न्यायाधीशों की असावधानी से ऐसे षड्यन्त्र नहीं पकड़े जा सके हों? ___ जब तीन वर्ष जैसी मुद्दत के लेखों का हेर फेर भी नहीं पकड़ा जा सके, तो सैकड़ों वर्षों की पुरानी करतूत आगे चलकर सत्य का
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