Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विकृति का सहारा ******************************************中 प्रतिमा बनाना, जो आकाश में वा पृथ्वी पर वा पृथ्वी के जल में है। उनको दण्डवत न करना न उनकी उपासना करना। क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने हारा ईश्वर हूँ।" (हिन्दी बाइबल निर्गमन अ० २० तथा व्यवस्था विवरण अ०५) तथा
“तू मूरतें नहीं बना लेना और न कोई खुदी हुई मूर्ति व लाट खड़ी कर लेना और न अपने देश में दण्डवत् करने के लिए नक्कासीदार पत्थर स्थापन करना, क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।"
(हिन्दी बाइबल लैव्य व्यवस्था अ० २६) और भी देखिये -
"स्रापित हो वह मनुष्य जो कोई मूर्ति कारीगर से खुदवाकर वा ढलवाकर निराले स्थान स्थापे, क्योंकि यह यहोवा को घिनौना लगता है।" (हिन्दी बाइबल व्यवस्था विवरण अ० २७)
इस प्रकार क्रिश्चियन समाज के मान्य सिद्धान्त मूर्ति पूजा के विरोध में ही हैं, फिर भी बाद में विकृति के कारण किसी रूप में यदि मूर्ति पूजा उसमें स्थान पा गई है तो यह उस समाज का मान्य सिद्धान्त नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह तो एक प्रकार का विकार है।
इसी प्रकार इस्लाम समाज के मान्य "कुरान' में भी मूर्ति पूजा के विरोध में उल्लेख है, एक बार मैंने हिन्दी कुरान शरीफ पढ़ते-पढ़ते निम्न वाक्य उसमें देखे थे।
हे पालनकर्ता! इस शहर ( मक्का) को शांति की जगह बन और मुझको और मेरी सन्तान को मूर्ति पूजा से बचा, हे पालन कर्ता इन मूर्तियों ने बहुतेरे लोगों को भटकाया है।"
(हिन्दी कुरान पारा १३ सूरे इब्राहीम आयत ३५-३६)
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