Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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(१) विक्रम संवत् १९४६ में बम्बई में एक यति महाशय ने एक षडयंत्र रचकर जनता में यह बात फैलादी कि - "बालकेश्वर के समुद्र तटपर एक जिन प्रतिमा गढ़ी हुई है ऐसा मुझे स्वप्न आया है" बस भोली भावुक जनता ने यतिवर्य की बात पर विश्वास कर लिया, गाजे, बाजे से यतिवर्य को लेकर जुलूस वालकेश्वर तट पर आया, यति महाराज ने स्थान दिखाया, मूर्ति खोदकर निकाली गई, श्रद्धालु जैन जनता ने भी शीघ्रता से सिद्ध शिला में पहुँचने के लिए मूर्ति के सामने धन के ढेर करना शुरू कर दिया, बाहर के भक्तों को भी इस अमूल्य और दुर्लभ अवसर का लाभ लेने के लिए आमंत्रण पत्र पहुँचाये गये। गुरु महाराज तीन चार दिन में ही मालामाल हो गये। किन्तु पाखण्ड कब तक छुपा रह सकता है? किसी दूर देश ने जांच कर यति जी के पाखण्ड की पोल खोल दी, बस यतिजी का दूसरे दिन का सूर्य भी न जाने किस स्थान पर उदित हुआ?
(जैन भावनगर ता० ६-११-३८ पृ० १०३२ “माटुंगामां चमत्कारी प्रतिमाः एक पाखण्ड' शीर्षक पर से) .
(२) दो वर्ष पूर्व मुंडारा (मारवाड़-स्टेशन फालना B. B.CI. Rly.) में वहाँ के ऋषभदेव जी के मन्दिर में खेरा मंडप बनने का कार्य शुरू हुआ, उस प्रसंग पर “पन्यास प्रवर हिम्मतविजयजी महाराज" वहीं पर थे। इस विषय में भावनगर के मूर्ति पूजक जैन पत्र के ता० १९-६-३७ के अंक पृ० ८७६ में निम्न शीर्षक --
चमत्कारिक घटना "पंचमकाल में साक्षात् देव मिलाप व वार्तालाप" से एक लेख छपवाया था उसमें यह लिखा था कि -
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