Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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- इसके अलावा मतमोह में पड़ कर सारासार का विचार किये बिना भी कितने ही लोग प्रवृत्ति करने लग जाते हैं, उनका उद्देश्य अन्य समाज के आडम्बर को देखकर अपने मत में भी उससे बढ़ चढ़कर आडम्बर कर जनता को आकर्षित करने (लुभाने) का होता है। परिणाम स्वरूप वे विकृति को अपना कर सैद्धान्तिक अवहेलना कर बैठते हैं।
___ मूर्ति पूजा के विषय में भी यही हुआ। अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं, आप आर्य समाज को ही देखिये, जो मूर्ति पूजा की विरोधी है, फिर भी अन्य समाजों के आडम्बर का अनुकरण कर अपने आद्य संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के चित्र का जुलूस निकालते सुने गये हैं। वास्तव में मूर्ति पूजा आर्य समाज का कोई सिद्धान्त नहीं है, किन्तु सकारण घुसी हुई विकृति ही है। बस इसी प्रकार अन्य समाज के लिए भी समझें।
क्रिश्चियन समाज में क्रास और मूर्ति का आदर कब से होने लगा? क्या यह समाज मूर्तिपूजक हैं? इसके सिद्धान्त मूर्ति पूजा का समर्थन करते हैं? इसका उत्तर यदि बाइबल से लिया जाय तो नकारात्मक ही मिलेगा, मैंने कुछ दिन पूर्व हिन्दी बाइबल को देखा, उसमें मूर्ति पूजा के विरोध में निम्न उल्लेख मिलते हैं। देखिये - . । “मैं तेरा परमेश्वर यहोवा * हूँ जो तुझे दासत्व के घर से अर्थात् मिश्र देश से निकाल लाया हूँ॥"
मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना। तू अपने लिए कोई मूर्ति खोदकर न बनाना। न किसी की * बाइबल की मान्यतानुसार ईश्वर का नाम।
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