Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
२०७ ********************学学会学*****************多次 इसका आदर करने से ही आत्मा का भला हो सकेगा। अन्यथा आपका और साथ-साथ आपके वचनों पर विश्वास रखकर त्रस तथा स्थावर जीवों की पूजा के नाम पर हत्या करने वाले अन्ध श्रद्धालु भक्तों का एकान्त अहित तो अवश्यभावी है ही।
(३१) साधुमार्गी जैन मूर्ति पूजक नहीं है
स्थानकवासी समाज को भी मूर्ति पूजक ठहराने के इरादे से श्री ज्ञानसुन्दर जी ने अपनी पुस्तक में कई चित्र साधुमार्गी समाज के साधुओं के देकर पृ० १७४ में यह लिखा हैं कि - "साधुमार्गी लोग अपने साधुओं के चित्र रखते हैं समाधियें तथा चरण पादुकायें बनवाकर उनकी पूज्य भाव से पूजा करते हैं" आदि।
उक्त कथन अविचारकपन का है क्योंकि जहाँ-जहाँ साधुओं की समाधियें आदि बनी हुई है, वे उन पूज्य पुरुषों के दाहस्थान पर रागी अनुयायिओं द्वारा स्मारक रूप में बनी हुई है। संसार में यह आम रिवाज है कि जिस समाज या मत के प्रवर्तक (नेता) का देहावसान हो जाय तब उनके मानने वाले उनके शव की अन्तिम क्रिया बड़े धूमधाम से करते हैं। उस स्थान पर कुछ स्मारक भी बनाते हैं, इसी प्रकार सांसारिक व्यवहार के चलते साधुमार्गी समाज के लोग भी अपने मान्य महात्मा के देहावसान पर समाधि आदि बनावें तो यह भी अक्षम्य नहीं है। हाँ इनकी वन्दना, पूजा, सत्कार आदि जरूर अन्ध श्रद्धा युक्त है और यह भी प्रायः पड़ोसियों की देखा देखी होता हैं। जैसे गाँव में किसी एक आदमी को हैजा, प्लेग या चैचक आदि की संक्रामक बीमारी हो जाती है तो वह धीरे-धीरे सारे गाँव में फैल जाती
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