Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्तूप निर्माण का कारण
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भक्तों की तरफ से बने हैं। यह प्रथा हजारों ही नहीं लाखों वर्षों से चली आ रही है। हाँ इस क्रिया में समयानुसार परिवर्तन तो बहुत हुआ और भविष्य में होता रहेगा, किन्तु मूल उद्देश्य यही था । यह बात दूसरी है कि सैकड़ों वर्षों से इसका मूल उद्देश्य बदल कर धार्मिकता में परिणित हो गया, इसे कहते हैं विकृति और ऐसी विकृति सामान्य जनता से आसानी से चल सकती है । जैसे कि -
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किसी एक समाजं या सम्प्रदाय के मान्य महापुरुष के देहोत्सर्ग के स्थान पर उनके अनुयायी किसी प्रकार का स्मारक बनाते हैं, तो उससे भिन्न समाज वाले भी ऐसे अवसरों पर पहले के स्मारक से कुछ अधिक विशेषता वाला स्मारक तैयार करते हैं। यही नहीं पर जब दो भिन्न सम्प्रदायों में आपस में संघर्ष हो उठता है तब दोनों के मन में एक दूसरे का अपमान करने के विचार पैदा होते हैं और उनमें से कुछ उग्र विचार वाले ऐसे भी होते हैं जो विरोधी सम्प्रदाय के मान्य स्मारक को नष्ट कर डालने का यत्न करते हैं (इस्लाम युग में हिन्दू मन्दिरों का भंग इस बात का स्पष्ट उदाहरण है) जब एक सम्प्रदाय वालों को यह भय होता है कि कहीं हमारे माननीय महापुरुष का स्मारक हमारे विरोधी नष्ट कर देंगे तो वे इसके लिए उस स्मारक पर पहरे आदि का प्रबन्ध करते हैं, इस प्रकार रक्षा की दृष्टि से वहाँ मनुष्यों के रहने की आवश्यकता होती है, होते होते वे ही स्मारक मन्दिर मूर्ति का रूप ले लेते हैं और रक्षक लोग पुजारी आदि बन जाते हैं तथा सामाजिक लोग उसकी पूजा आदि में धर्म मानने लग जाते हैं, यदि मेरा अनुमान ठीक है तो मैं कह सकता हूँ कि - ये पूजादि के वरघोड़े, रथयात्रा, मूर्तियों के जुलूस आदि का जन्म भी प्रायः विरोधियों को और उनकी समाज को नीचा दिखाने और अपनी महत्ता बताने के उद्देश्य से हुआ हो।
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