Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१८४ स्वर्ण गुलिका से मूर्ति का मिथ्या सम्बन्ध ****乎乎乎卒卒卒**卒卒卒中字*本本学李本次安安*****本幸卒卒本本事 केवल कङ्कर ही संग्रह करने के समान यह अनुचित करतूत क्यों सूझी? क्या भोली और अनभिज्ञ जनता को भ्रम में डालने के लिये तो नहीं? वास्तव में यह निरा प्रपञ्च ही है, अन्य कुछ नहीं। - बन्धुवर! ऐसा करने से आप सुज्ञ जनता में उपहास के पात्र ठहरते हैं, और आपका पक्ष भी मनःकल्पित दिखाई देता है। आशा है कि भविष्य में आप ऐसी वृत्ति से अपने को बचाये रखेंगे।
(२६) स्वर्ण गुलिका से मूर्ति का
मिथ्या सम्बन्ध सुन्दर मित्र ने पृ० १३० से १३१ तक स्वर्ण गुलिका की एक कथा देकर वह बताया है कि चण्ड प्रद्योतन राजा स्वर्ण गुलिका के साथ महावीर भगवान् की एक मूर्ति भी उड़ाकर ले गया था जिसके लिए युद्ध हुआ था, और इसी पर से पृ० १३२ में यह भी लिख दिया कि श्री अमोलकऋषिजी ने प्रश्नव्याकरण का अनुवाद करते मूर्ति का सम्बन्ध छोड़ दिया, यह ऋषिजी की तस्कर वृत्ति है। आदि।
सुन्दर मित्र ने उक्त कथा किसी प्रामाणिक और उभय मान्य आगम से नहीं दी, किन्तु अपने ही मूर्ति पूजक पूर्वाचार्यों के रचे हुए ग्रन्थों और टीका के आधार से दी है, और इसी पर से आप स्वर्गीय पूज्य पाद अमोलकऋषिजी महाराज साहब पर बरस पड़े हैं, किन्तु यह इनकी दुष्ट वृत्ति ही हैं।
प्रश्न व्याकरण सूत्र के अब्रह्म नासक चतुर्थ आम्रव द्वार में अब्रह्मचर्य (व्यभिचार) की कामना को लेकर स्त्रियों के लिए बड़े २
युद्ध हुए हैं, ऐसा बताकर कुछ स्त्रियों के नामोल्लेख किये हैं, उनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only
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