Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१९२ डॉ० हरमन जेकोबी का अटल अभिप्राय ********李宏********************************** वर्द्धन नाम मात्र से उसे कुलवृद्धिकर माना जाय तो वही सत्य मिथ्या हो जायेगा, द्रव्य वेषधारी को ही साधु मान लेने पर यह भी मिथ्या हो जायेगा। तालाब को ही समुद्र मानने से यह भी झूठ हो जायगा। इसी तरह स्थापना को ही साक्षात् मानने या साक्षात् के समान वंदना नमस्कार और पूजादि करने से स्थापना सत्य नहीं रह कर मिथ्या हो जाता है।
इसलिए सुन्दर मित्र को पक्षपात छोड़कर शुद्ध हृदय से विचार कर सत्य को ग्रहण करना चाहिए और यह स्पष्ट स्वीकार करना चाहिए कि स्थापना सत्य की ओट मूर्ति पूजा के अनुकूल नहीं, किन्तु प्रतिकूल होकर उत्सूत्र प्ररूपणा के समान है।
(२८) डॉ. हरमन जेकोबी का अटल
अभिप्राय ___ मूर्ति पूजा के प्राचीन इतिहास पृ० १४६ में डॉ. हरमन जेकोबी के मूर्ति पूजा विषयक दिये हुए अजमेर के अभिप्राय का खण्डन करते हुए श्री ज्ञानसुन्दर जी लिखते हैं कि - डॉ० हरमन साहब का आखरी अभिप्राय है कि - "जैन आगमों में मूर्ति पूजा का विधान है" किन्तु सुन्दर मित्र का यह कथन भी ठीक नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि डॉ० हरमन जेकोबी साहब को अजमेर के समस्त (तीनों फिरकों के) जैन गृहस्थों ने एक सभा करके मान पत्र दिया तथा साथ ही जैन दिवाकर की पदवी भी प्रदान की, उस समय डॉ० साहब ने अपने भाषण में यह भी कहा था कि - "अंगोपांग में किसी भी जगह मूर्ति पूजा का विधान नहीं है" डॉ० महोदय के इन शब्दों ने मूर्तिपूजकों में हलचल मचादी। इसी समय जोधपुर में श्री धर्मविजयजी जैन साहित्य
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