Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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अर्थात् - सोने की मृगी किसी ने बनाई नहीं, देखी नहीं, सुनी नहीं, तो भी तृष्णावश श्री रामचन्द्र जी उसे लेने को दौड़े, यह विनाश के समय बुद्धि की विपरीतता ही है।
श्री रामचन्द्रजी मर्यादा पुरुषोत्तम और आदर्श पुरुष माने जाते हैं उन्होंने मायावी मृग के पीछे दौड़ने की भूल की, क्या उनका उदाहरण लेकर सभी को ऐसी भूल करनी चाहिये? - (२) चरितानुयोग (कथाओं) का प्रमाण देने वाले सुन्दर महाशय के पूर्वज प्रभाविक आचार्यों में से आचार्य वप्पभट्टी ऊँटनी पर सवार हुए, सूराचार्य हाथी पर चढ़ बैठे, गोविन्दाचार्य ने मन्दिरों में वेश्याओं का नाच करवाया और भी कई प्रभाविक आचार्य इस कोटि के हुए (प्रभाविक चरित्र) इनके उदाहरण से सुन्दर बन्धु को भी वाहनारूढ़ होना चाहिए
और मन्दिरों में वेश्याओं को नचाकर धर्म प्रभावना बढ़ाने के साथ-साथ उन वेश्याओं का भी उद्धार (स्वर्ग, मोक्ष, प्रदान) करना चाहिए।
(३) सूर्याभ और विजय देव ने भूत, नाग, यक्षादि की मूर्तियें पूजी। द्वार, शाखा, तोरण, वापिका, नागदन्ता और ध्वजा आदि की भी पूजा की तो मूर्ति पूजकों को भी ऐसी क्रियायें करनी चाहिए और उसमें भी धर्म मानना चाहिए? ..
(४) द्रौपदी ने पांच पति एक साथ किये, फिर भी सती कहलाई इसका उदाहरण लेकर आज कोई युवती दो या तीन पति ही करले
और अपने को सती सिद्ध करने के लिए इसी षष्टमांग के द्रौपदी वर्णन की साक्षी आपके सामने पेश करे तो आप स्वयं कथाओं के अनुकरण करने वाले होने से उस युवती के सामने किस प्रकार बोल सकते हो? ___ अधिक कहाँ तक लिखा जाय, समझदार तो संकेत मात्र में समझ जाते हैं। फिर भी सुन्दरजी महात्मा की सुन्दर जाल का छेदन
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